देश आपका
मेरा सब कुछ था, हां सब कुछ मेरा था।
मेरी ही काली रातें,बिन सूरज मेरा सबेरा था।।
दुश्वारी लाचारी मेरी थी, सर्द दर्द दुख मेरा था।
मेरी आंखों ने जो देखा, वो काला घना अंधेरा था।।
चिंगारी मेरी आंखों में, वह व्यथित हृदय भी मेरा था।
कहता किसको किस मुंह से, सारा परिवेश तो मेरा था।।
मैं जागा पर न भागा, उन सबका दर्द जो मेरा था।
कैसे पलते बच्चे सोचो, जो कंकाली का डेरा था।।
सब कुछ तो खत्म हुआ, वो सब तेरा जो मेरा था।
तू शहीद कहे या कुछ, अब देश तेरा जो मेरा था।।
मैं जगा जिया और जान दिया, मैं किया कर्म जो मेरा था।
कितनों के सूरज डूबे “संजय”, तब देश को मिला सबेरा था।।
” देश आपका, सबकुछ आपका”