“देशभक्ति मुक्तक”
कोई जिंदा है मर कर भी,
कोई मर कर भी जिंदा है,
न दिलों में राष्ट्रभक्ति हो,
वो मानुष दरिंदा है,
मेरी धरती मेरी माता,
हमें आवाज देती है,
वतन पर जो निछावर हो,
वही असली बाशिंदा है।
यहीं हम हैं यहीं तुम हो,
यहीं मिट्टी है भारत की,
सजा लो शीश पर अपने,
करो सम्मान शहीदों की,
न झुकने दो न मिटने दो,
तिरंगा शान है अपना,
जन-गण-मन का है यह दिन,
और शाम इबादत की।
ना हम भूले ना तुम बोलो,
ना भूलेगा ये हिंदुस्तान,
जो लेकर जान हथेली पर,
हो गये देश पर कुर्बान,
थोड़ा ठहरो जरा संभलो,
उन्हें भी याद तो कर लो,
जो अपना सर कटा कर भी,
बचा गए देश का अभिमान।
थोड़ा ठहरो जरा सुन लो,
कि एक आवाज आई है,
चली है आंधियां सरहद पर,
फिजां में मौत छाई है,
कफन को बांध लो सर पर,
तिरंगा हाथ में ले लो,
कि मातृ कर्ज चुकाने की,
हमारी बारी आई है।
कोई जिंदा है मर कर भी,
कोई मर कर भी जिंदा है,
न दिलों में राष्ट्रभक्ति हो,
वो मानुष दरिंदा है,
मेरी धरती मेरी माता,
हमें आवाज देती है,
वतन पर जो निछावर हो,
वही असली बाशिंदा है।
यहीं हम हैं यहीं तुम हो,
यहीं मिट्टी है भारत की,
सजा लो शीश पर अपने,
करो सम्मान शहीदों की,
न झुकने दो न मिटने दो,
तिरंगा शान है अपना,
जन-गण-मन का है यह दिन,
और शाम इबादत की।
ना हम भूले ना तुम बोलो,
ना भूलेगा ये हिंदुस्तान,
जो लेकर जान हथेली पर,
हो गये देश पर कुर्बान,
थोड़ा ठहरो जरा संभलो,
उन्हें भी याद तो कर लो,
जो अपना सर कटा कर भी,
बचा गए देश का अभिमान।
थोड़ा ठहरो जरा सुन लो,
कि एक आवाज आई है,
चली है आंधियां सरहद पर,
फिजां में मौत छाई है,
कफन को बांध लो सर पर,
तिरंगा हाथ में ले लो,
कि मातृ कर्ज चुकाने की,
हमारी बारी आई है।