देशभक्ति जनसेवा
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लॉकडॉऊन के दौरान सोसल डिस्टेंसिंग का पालन करते शहर की झुग्गी झोपड़ी बस्ती में एक स्वयंसेवी संस्था के लोगों द्वारा नि:शुल्क पके हुए भोजन के पैकेट का वितरण किया जा रहा था। ऐसे कार्यों की निगरानी के लिए आए कलेक्टर साहब के सामने मास्क लगाए एक मजदूर हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया।
कलेक्टर साहब ने पूछा, “क्या नाम है आपका और क्या करते हैं आप ?”
वह बोला, “साहब, मेरा नाम शंभूनाथ है। मैं चावड़ी मजदूर हूँ। खेती किसानी, भवन निर्माण और खाना बनाने का कार्य करता हूँ।”
कलेक्टर ने पूछा, “ओह, अभी लॉकडाऊन में तो आपका काम काजबंद है। आपको शासन की ओर से मिलने वाला अनाज का पैकेट तो मिल गया है न ?”
शंभू बोला, “हाँ साहब, मिल गया है। मेहरबानी है आप लोगों की। यहाँ तो कभी-कभी पका हुआ भोजन भी मिल जाता है।”
कलेक्टर ने कहा, “ठीक है। फिलहाल तो आप लोग घर में ही रहिए। यह सबके हित में है। हम आप लोगों की हर संभव मदद करेंगे। आपको किसी भी प्रकार से चिंतित होने की जरुरत नहीं है।”
शंभू बोला, “साहब, इस संकट की घड़ी में आप सब लोग तो देशहित में अपना-अपना योगदान दे ही रहे हैं। मैं भी अपने देश के लिए कुछ सकारात्मक कार्य करना चाहता हूँ।”
कलेक्टर ने आश्चर्यचकित हो पूछा, “क्या करना चाहते हैं आप ?”
शंभू ने कहा, “साहब, मैं खाना अच्छा बना लेता हूँ। यदि आप चाहें, तो जरूरतमंद लोगों के लिए जहाँ भोजन पकाया जा रहा है, वहाँ मुझे भी काम करने की अनुमति दे दीजिए या फिर एक बड़ा-सा फर्राटा झाड़ू देकर इस मुहल्ले की साफ-सफाई करने की अनुमति दे दीजिए। घर में खाली बैठना अच्छा नहीं लग रहा है।”
कलेक्टर साहब ने शंभू की भावनाओं का सम्मान करते हुए तत्काल उसे एक स्वयंसेवी संस्था के लिए भोजन बनाने के कार्य में सहयोग के लिए संलग्न कर दिया।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़