देशप्रेम
व्यंग्य
ये कैसा देशप्रेम
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आज सुबह सुबह
एक शहीद की आत्मा से
मेरी आत्मिक मुलाकात हो गई
औपचारिक हाल चाल के बाद
शहीद की आत्मा रो रोकर कहने लगी।
हमारी शहादत का हमें
ये कैसा सिला मिल रहा है?
जब देश का माहौल
स्वार्थवश खराब किया जा रहा है।
अनाचार, अत्याचार, भ्रष्टाचार का
इतिहास लिखा जा रहा है,
धर्म के नाम पर माहौल बिगाड़ा जा रहा है
कभी मंदिर कभी मस्जिद
कभी धार्मिक यात्राओं की आड़ में
पत्थरबाजी, बमबाजी, हिंसाकर
विघ्न डालने, माहौल गरमाने का
कुचक्र,षड्यंत्र किया जा रहा है,
आग भड़काया ही नहीं लगाया भी जा रहा है,
राजनीति की आड़ में
भाई भाई को आपस में लड़ाया जा रहा है,
सार्वजनिक संपत्तियों को ही नहीं
आम लोगों के घरों दुकानों, प्रतिष्ठानों को
लूटकर, आग लगाकर, बर्बाद कर
कौन सा देशप्रेम दिखाया जा रहा है?
दंगा फैलाने,आग लगाने ही नहीं
कत्लेआम करने तक के लिए उकसाया जा रहा है,
व्यवस्थित ढंग से योजनाएं बनाई जाती हैं
ईंट पत्थर, हथियार पहले से ही
भंडारित कर लिये जाते हैं।
नारियों का उत्पीड़न आज भी हो रहा है
अब तो सरेआम नंगा तक किया जा रहा
कई कई टुकड़ों में काटा जा रहा है,
सब कुछ सरकारों की नाक के नीचे हो रहा है।
सुरक्षा तंत्र पर सत्ता की राजनीति का अंकुश हो गया है।
आज की राजनीति भटक गई है
समस्या, घटना की पुनरावृत्ति से मुंह मोड़
अपनी अपनी सुविधा से राजनीति हो रही है।
संवेदनाएं मर रही हैं आज के नेताओं की
राजनीतिक लाभ के लिए आज
अपशब्दों की बेलगाम बौछार हो रही,
एक स्वर में राष्ट्रहित की आवाज
भला अब कहां आती?
राजनीतिक विरोध के लिए
राष्ट्र को नीचा दिखाने में भी
आज के नेताओं को शर्म कहां आती?
क्या क्या कहें मित्र
कहते हुए अब मुझे खुद ही शर्म आने लगी है,
लगता है मेरी पीड़ा आपको भी रुलाने लगी है।
पर क्या करूं मेरी शहादत ही
मुझे अब आंख दिखाने लगी है,
रोज ही शिकायत करने लगी है।
माफ़ करना मेरे यार मुझे अफसोस है
तुम्हें दु:खी नहीं करना चाहता था
पर तुम्हारी आत्मीयता पाकर खुद को रोक न पाया
इसलिए आज तुमसे अपनी वेदना कह सुनाया।
कुछ कर सको तो मेरी आत्मा की शांति के लिए
कुछ न कुछ जरूर करना,
वरना चुपचाप देशप्रेम का तमाशा देखते रहना
और हमारी शहादत पर मौन रह जाना।
खुद को परेशान मत करना,न आंसू बहाना।
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश