देव घनाक्षरी
देव घनाक्षरी -घनाक्षरी छंद के इस भेद में 33 वर्ण होते हैं 8,8,8,9 वर्ण पर यति का प्रयोग उत्तम माना जाता है। वैसे कवि 16-17 वर्णों पर भी यति का प्रयोग कर सकता है। घनाक्षरी छंद के इस भेद के लिए यह आवश्यक है कि चरणांत में नगण (।।।) लघु,लघु ,लघु का प्रयोग हो।
(1)
भीगती है गोरी जब,सावन की बारिश में,
पड़ते कपोल लट,पानी तन जाए छहर।
दाहक अधर लगें,बनी रति प्रतिबिंब,
कमनीय छवि देख ,मन में उठे है लहर।
लालसा सानिध्य जगे, दर्शन ये होता रहे,
पूर्ण करो प्रभु चाह,रुक जाए यही पहर।
वृष्टि की अमंद धार, प्राण प्रदायिनी जग,
उर सुख दायिनी भी,इंद्र देव जाओ ठहर।।
(2)
देश की पुकार सुन,लिए आन बान संग,
छोड़ घर परिवार, सीमा पर करें गमन।
पड़ोसी सब दुर्दांत, शांति भंग कर रहे,
खड़े हो आतंक संग,नष्ट करें नित चमन।
शत्रु को पछाड़े नित,शेर से दहाड़े जो,
ऐसे ही सपूत रखें,बंधु देश मध्य अमन।
जिनके प्रताप से,सीमाएँ सुरक्षित हैं,
ऐसे वीर सैनिकों को,आओ सब करें नमन।।
डाॅ. बिपिन पाण्डेय