देवी महात्म्य पंचम अंक 5
जय माता दी
पंचम नवराता
स्कंदमाता-
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दिवस पांचवां नवराता का ,माता स्कंद के नाम है।
कार्तिकेय की जननी अम्बे ,बारम्बार परणाम है।★
जननी सतगुण प्रिय तुम्हें है,पूरन करती सद्कामना।
तुमको ध्यान करे कोई तो , निश्चित मोक्ष ही जानना।★
स्वेत रंग ही तुम्हैं पसन्द है, जिसमे पूरी पावनता।
शांति स्वरूपा तुम हो माता,जिसमे पूरी शीतलता।★
सूर्यमंडल की हो अधिष्ठात्री ,पुष्कल चक्र की स्वामिन हो।
शुक्र ,चन्द्रमा दोनों सेवक , सारे शुभ फल तारिन हो।★
पदमासन पर बैठी हो ,चार भुजा की धारिन हो।
एक भुजा स्कंद सँभाले , इक वरमुद्रा दायिन हो।★
(स्कंद — कार्तिकेय जी)
कमल हाथ मे बायें दाएं ,मानो अस्त्र सुकोमल हो।
सवार सिंह के वाहन पर, फिर भी अद्भुत कोमल हो।★
सेनापति कुमार बने जब , देवासुर संग्राम में।
तुम भी उनके साथ रही थी ,उस भीषण संग्राम में। ★
करे साधना जो भी मैया ,इच्छित फल वह पाता है।
इह लौकिक तो क्या परलौकिक , कष्ट मुक्त हो जाता है।★
माया बन्धन से मुक्त सदा , चित्त शांत बन जाता है।
बाहर की हो या अंदर की , वृर्तियो से मुक्त हो जाता है।★
स्वेत वसन ओर भोजन स्वेत , तुमको बहुत लुभाता है।
केले का प्रसाद भी माँ कुछ ,तुमको ज्यादा भाता है।★
सन्तान विमुख जितने भी है ,गर तेरा कोई ध्यान करें।
पल में खुश होकर जगदम्बा,उसकी गोद को शीघ्र भरे।★
सन्तान सुखी हो जाती है ,केवल तुमको भजने से।
मिल जाते है सारे ही सुख, स्कंदमाता के जपने से।★
‘मधु’ अज्ञानी क्या जाने , जो भी माया तेरी है।
बस दान कृपा का मिल जाये ,इतनी सी इच्छा मेरी है।★
कलम घिसाई
(स्वरचित) कॉपी राइट
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विशेष —
श्लोक ध्यान के लिये (साभार)
सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया | शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी ||
या देवी सर्वभूतेषु माँ स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।