देवान् भावयतानेन
राम ! राम ! राम ! राम !
देवान् भावयतानेन – यहांँ ‘देव ‘ शब्द उपलक्षक है, अतः इस पद के अंतर्गत मनुष्य, देवता, ऋषि, पितर आदि समस्त प्राणियों को समझना चाहिए । कारण कि कर्म योगी का उद्देश्य अपने कर्तव्य कर्मों से प्राणी मात्र को सुख पहुंचाना रहता है । इसलिए यहां ब्रह्मा जी संपूर्ण प्राणियों की उन्नति के लिए मनुष्य को अपने कर्तव्य कर्म रूप यज्ञ के पालन का आदेश देते हैं । अपने अपने कर्तव्य का पालन करने से मनुष्य का स्वत: कल्याण हो जाता है (गीता १८ वें अध्याय का ४५ वां श्लोक) कर्तव्य कर्म का पालन करने के उपदेश के पूर्ण अधिकारी मनुष्य ही है । मनुष्यों को ही कर्म करने की स्वतंत्रता मिली हुई है, अतः उन्हें इस स्वतंत्रता का सदुपयोग करना चाहिए ।
परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी द्वारा रचित ग्रंथ गीता साधक संजीवनी अध्याय तृतीय श्लोक संख्या ११ पृष्ठ संख्या १८७
राम ! राम ! राम ! राम !
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