देवकी मौसी की कृष्णा !
भारत भर और संसार के सनातन धर्मावलंबियों में भगवान श्रीकृष्ण के जन्म दिवस ‘श्री कृष्ण जन्म अष्टमी’ के रूप में मनाये जाने की कई तरह की परंपरा है । पुराणों, महाभारत और कई टीकाओं में ऐसा वर्णन है । विज्ञान, साक्ष्य और प्रामाणिक मान्यताओं के तह में जाने पर काल-अवधारणा विषयक विसंगतियाँ हो सकती हैं, परंतु ऐतिहासिक – पात्रों को स्मरणार्थ अवसर की तलाश में जन्म दिवस या अन्य प्रसंगश: उनकी सुधि लेना गलत थोड़े ही है !
कवि जयदेव ने अपनी संस्कृत कविता में भगवान के दस अवतारों में आठवाँ अवतार के रूप में हलधर-कृष्ण को लिखा है , वैसे श्रीकृष्ण आठवीं संतान थे भी । यहाँ कृष्ण के साथ ‘हलधर’ से तात्पर्य बलराम से है । प्रश्न है, भगवान के आठवाँ अवतार में बलराम और कृष्ण दोनों हैं , क्योंकि त्रेता-प्रसंग में राम के साथ लक्ष्मण की अनिवार्यता किसी से छिपा थोड़े ही है ! राम के जीवन में लक्ष्मण ‘बड़े’ भाई’से थे और द्वापर-प्रसंग में कृष्ण के बड़े भाई के रूप में हल – धारक बलराम जन्म से बड़े हुए , हालांकि दोनों स्थिति में वे सौतेले भाई ही थे । कृष्ण और बलराम को संयुक्त रूप से अवतार माना जाता है । विज्ञान की अगर बात मान भी ले, कि भगवान यदि परिकल्पना भी है, तो अवतार को हम मानव सहित जीवों के रक्षक के तौर पर देख सकते हैं !
पांडवों की माता कुंती और वसुदेव – दोनों सगे भाई-बहन थे, जरासंध के जामाता कंश की बहन (या सौतेली!) देवकी जहाँ वसुदेव की दूसरी पत्नी थी , कृष्ण देवकी का पुत्र था । वसुदेव की पहली पत्नी रोहिणी थी । रोहिणी जहाँ यशोदा की सहेली थी , एतदर्थ वसुदेव और नन्द मित्र हुए । रोहिणी के पुत्र बलराम थे, पुत्री सुभद्रा थी । सुभद्रा जहाँ कृष्ण के सखा-भक्त और उनके फुफेरे भाई अर्जुन की पत्नी थी । बलराम कृष्ण से बड़े थे, सौतेले भाई थे । नन्द की पत्नी यशोदा जहाँ कृष्ण की पाल्या माता थी । नन्द – यशोदा जाति से ग्वाले थे, चूँकि कृष्ण के जन्म से बाल्यावस्था तक उनका परवरिश नन्द – यशोदा ही किये थे , इसलिए कृष्ण को ग्वाला कहा जाता है, किन्तु वे वस्तुतः ग्वाले नहीं थे । वसुदेव के पुत्र होने के नाते और अपत्ययवाची संज्ञार्थ कृष्ण को वासुदेव भी कहा जाता है । वसुदेव यदुवंशीय क्षत्रिय थे, शब्द ‘यदु’ से अपत्ययवाची संज्ञार्थ ‘यादव’ शब्द बनता है । इसप्रकार से ग्वाला और यादव के बीच न कोई तारतम्य है, न ही कोई सामंजस्य । निष्कर्षतः कृष्ण यादव क्षत्रीय वंश से थे, किन्तु वे पशुपालक ग्वाले नहीं थे !
मूलतः, कृष्ण की आठ पत्नियाँ थीं, जिनमें रुक्मिणी, सत्यभामा, मित्रबिंदा प्रमुख हैं । फिर तो 16,108 में 16,100 महिला-मित्र थीं । इन 16,100 के साथ कृष्ण के ‘प्लेटोनिक-अफ़ेयर’ थे, पुराण भी इसे रासलीला कहते हैं, सम्भोग-लीला नहीं । यही कारण है, कृष्ण को ‘योगेश्वर’ कहा जाता है । परंतु कृष्ण के प्रेम में मतवाली ये गोपियाँ उद्धव से कृष्ण से संसर्ग को दैहिक रूप में परिभाषित करती हैं । कृष्ण का हिंदी अर्थ ‘काला’ (Black) होता है, परंतु आज ‘एक’ भी लड़की अपने प्रेमी या पति को काले रंग की सपने में भी देखना नहीं चाहती है । फिर यह युवतियों की कैसी कृष्ण-प्रेम है ! हाँ, लड़के भी तो मिल्की-वाइट लड़कियाँ ही पसंद करते हैं । कृष्ण का एक अन्य हिंदी अर्थ ‘छद्म’ भी से है । इसी कुटलता ही तो अर्जुन को नंबर-1 कृष्ण-भक्त बनाये रखा । जहाँ कृष्ण-भक्त सुधन्वा को अर्जुन के हाथों ही मरना पड़ा । कृष्ण का कृष्ण पक्ष को न देखकर हमें किसी की अच्छाइयों की कद्र अवश्य करनी चाहिए । ‘गीता’ में परिणाम की प्रतीक्षा के कर्म करते रहने का उपदेश आज के परिप्रेक्ष्य जँचता नहीं है, क्योंकि प्रतियोगितात्मक परीक्षा में परिणाम कर्म के आधार पर तय नहीं होते है, यह परिणाम तो रिश्वत और पैरवी तय करते हैं ! तब गीता- उपदेश फख़त मन्त्र-जाप बना रह जाता है।
अब हम प्रस्तुतालेख के शीर्षक पर आते हैं । मेरी अपनी मौसी देवकी का बड़ा पुत्र कृष्णा जन्मजात मेधावी रहे हैं, उनका बाल्यावस्था मेरी माँ यशोदा के सान्निध्य में भी बीता है । भगवान कृष्ण के बाल्यावस्था कष्ट इस कृष्ण के जवानी-कष्ट से जुड़ा हुआ है । आर्थिक अभावों में पलना , वो भी अगर पड़ौस में धनियों के चास हों — कृष्णा भी मैं या मेरा परिवार धनी क्यों नहीं हैं, मैं और मेरा परिवार ही कष्ट में क्यों हैं ? क्यों हमारे पड़ौसी रोज-रोज मीट-भात व दूध- भात ही खाते हैं , क्यों मैं और मेरे परिवार के सदस्यों को सूखी रोटी भी मयस्सर नहीं है ????? मैट्रिक इन्हीं सपनों में अच्छा श्रेणी से पास किये , ऊँचें सपने को लिए, अपनी दरिद्रता को दूर करने के प्रति कटिबद्धता लिए तथा अपने अंदर पनप रहे इन प्रश्नों के निदानार्थ इंटर में साइंस रखा तथा पिता के माटी – पेशा में सहयोग भी करते रहा । रात-दिन दोनों तरह की मेहनत और आरंभिक प्रतियोगिता परीक्षाओं में ‘अनुतीर्णता’ से कृष्ण का मस्तिष्क अस्थिर हो गया । घर में तोड़-फोड़ करने लगा , वशिष्ठ नारायण सिंह की भाँति आपस में बुदबुदाने लगे । लोगों ने कहा- वह पागल हो गया है । दो दर्जन डॉक्टरों के यहाँ इलाज़ करवाया गया, लाखों खर्च हुए । पर अभी भी उनकी हालत 10 वर्षों से जस की तस है । मौसी देवकी को अपने कृष्णा पर अभी भी कोई चमत्कार होने की आशा है । किन्तु क्या उस कृष्ण की ‘गीता’ में इस कृष्णा के सपनों को परिणाम तक पहुंचाने का कोई श्लोक है, तो बताना भैया । अपने कृष्णा को देखकर श्री कृष्ण जन्म अष्टमी फ़ीका लगता है।