देलवाड़ा माउंट आबू यात्रा
भाग-दो (बस-यात्रा)
आध्यात्म कहता है कि पहले खुद को जाने अपने आप को पहचाने,दूसरों को जानने से पहले दूसरों में कमियां ढूंढने या दूसरे की उपलब्धियों का गुणगान करने से पहले हमें अपने अंदर झांक कर देख लेना चाहिए इसी भावना से प्रेरित होकर मैंने भी दूसरे राज्य की संस्कृतियों वहां के विचार धरोहर देखने से पहले अपने ही राज्य की सिरोही जिले में माउंट आबू देखने का अचानक मन हुआ तो हमने बस निकलने की वजह से तुरंत स्नान करके कमरे से बस स्टैंड स्टेशन की ओर प्रातः 9:00 हॉस्पिटल चौराया जालोर पहुंचे और वहां जाकर आबूरोड जाने वाली बस का पूछा तो कनेक्टर साहब ने बताया कि वह तो कभी की निकल गई अब तो आपको सिरोही होकर जाना पड़ेगा तब हमने सिरोही जाने वाली बस का पूछा। तो बताया 9:15 बजे या से रवाना होगी हम बिना खाना खाए बस में बैठ गए टिकट का पूछा तो बताया कि 1 जने के 80 रुपए लगेंगे हमने 4 जनों का टिकट लिया और बस में बैठ गए बस की खिड़कियां हिलती डुलती , टूटे-फूटे कांच और सीटें टूटी हुई पर क्या करे।माउंट आबू जाना भी जरूरी था पहली बार यात्रा थी जैसे तैसे करके बस में बैठे बस जालौर से रवाना हुई फिर मैंने मोबाइल निकाला मोबाइल में व्हाट्सएप पर देखा तो एक मैसेज आया हुआ था कि सिरोही अस्पताल में किसी मरीज भरमाराम नाम का मरीज भर्ती है उनको ब्लड की अति आवश्यकता है। मैंने उनसे बात करने की कोशिश की पर नेटवर्क की प्रॉब्लम होने के कारण उनसे बात ना हो पाई तो मैंने व्हाट्सएप के माध्यम से सोनू जी जीनगर को फोन लगाया और मैसेज किया। और उनके मरीज के ब्लड ग्रुप के बारे में पूछा था कहा कि बी पॉजिटिव है । फिर मैंने सोनू जी से कहा कि मैं आधे घंटे में सिरोही पहुंचने वाला हूं। मैं हॉस्पिटल जाकर फोन करता हूं बीच में कहीं गांव आए हरी-भरी प्रकृति को देखकर मेरा मन इस प्रकृति ने मन मोहक लिया और मैंने कहीं अपने फोन में पेड़ो के फोटो भी खींचे और अपनी मंजिल की ओर रवाना हो गए बस बागरा से निकलती हुई सिरोही की ओर बढ़ने लगी बीच मे कई मार्केटे आई और सिरोही मार्केट होकर सरकारी बस स्टेशन पहुँची और हम सब वहां उतरे और साथियों को बताया कि हम को हॉस्पिटल पहुंचना है तो उन्होंने कहा कि क्यों तो मैने उनको पूरी घटना बताई तो कहा कि जल्दी चलो। मैंने कहा किसी को रक्त की आवश्यकता है तो वहां हमको पहुंच कर उनको देखना पड़ेगा सबने मन बनाया की सबसे पहले यह काम करना चाहिए बाद में यात्रा कर लेंगे फिर हम सभी वहां से गूगल मैप के द्वारा अस्पताल की ओर बढ़ने लगे हमारे लिए सिरोही नया था तो किसी को पूछा उन्होंने बताया कि आप आगे बढ़ते रहिए फिर हम जैसे तैसे करके अस्पताल पहुँचे और वहां जाकर सोनू जी को फोन लगाया तो उन्होंने उस मरीज के पिता से बात कर के मरीज के पिता जी को मेरे पास भेजा फिर हमने उनको बारे में बताया तो उन्होंने कहा है कि खून की कमी है एक यूनिट कल भी लगाया है तो हम ब्लड बैंक पहुचे तो डॉक्टर ने बताया कि वहां जाकर डॉक्टर के पास में लिखवाकर लेकर आइये। तो हम डॉक्टर के पास पहुचे।ने वह हम गए एक नर्स से लिखवा कराएं कि कल मैंने लिखकर दे दिया है कल एक यूनिट ब्लड लगाया है तो आप वहां जाकर कहना कि कल फाइल दे दी थी फिर हम वापस ब्लड बैंक आये है और वह पूरी जानकारी उनको बताइए तो उन्होंने देखा फिर उन्होंने कहा आप अंदर आओ हम अंदर गए हमारा खून टेस्ट किया खून टेस्ट करके हमको ब्लड वाले कमरे में लेकर गए और एक यूनिट रक्त लिया फिर परिवार से मिलने गए वापस ओर आश्वासन दिलाया कि कुछ नही होगा हमारे छोटे भाई को। फिर हम वहा से आबू रोड रवाना हुए।यात्रियों की चहल पहल मेरी नींद के साथ ही समाप्त हो गयी, सुबह आंख खुली तो दिन निकल आया था। बस आबू रोड पहुँची फिर वहा से बस का टिकिट लिया और सीट पर बैठ कर राहत भरी लम्बी सांस ली। मौसम बेहद सुहाना हो चला था,अगस्त की हल्की हल्की ठंड का अहसास फरवरी के ऋतुराज की तरह हो गया था। बस ने रास्ता तय करना शुरू किया, सर्पिलाकार रास्ते से गुजरना बड़ा डरावना भी था रोमांचक भी। बस ऐसे लहरा के चल रही थी मानो कोई विषैली नागिन बीन के इशारों पर लहराकर नाचती है। एक ओर गहरी खाई दूसरी ओर गगनचुम्बी पहाड़ियां। कभी कभी तो दूर देखने में लगता था कि हम सीढियां सी चढ़ते जा रहे हैं। माउण्ट आबू की आबोहवा में घर बहुत दूर हो गया था, यहां सिर्फ और सिर्फ जिज्ञासा, रहस्य और रोमांच था जो अपनी ओर आकर्षित कर रहा था।
शाम को 5 बजे के लगभग बस स्टैंड से बाहर निकले। गूगल मैप से पता कर लिया था कि नक्की लेक 500 मीटर की ही दूरी पर है तो निकल पड़े पैदल ही। झील का सौंदर्य अलौकिक ही था। शान्त झील देखकर मन की क्रियाएं भी शान्त हो चली थीं। काश सारी दुनियां झील के पानी की तरह शान्त हो जाए। झील का पानी शांत होकर भी बहुत कुछ कह रहा था। शांत पानी भी सैकड़ों प्रजातियों के जीव जंतुओं को पोषित कर रहा था। झील का पानी सैलानियों के कोलाहल को ध्यान पूर्वक सुन रहा था, शांत रहने का संदेश दे रहा था, परंतु शांत कौन रहता है। बच्चे बूढ़े और जवान सब के सब नौकाओं में बैठकर उस झील की एकाग्रता को भंग करने पर तुले थे। कोई चप्पू से सोती झील को जगाता, कोई पैडल वाली नाव से झील को झकझोरता, पर झील तो झील थी। गहरी नींद में सोए मनुष्य की तरह हिलती डुलती और फिर स्थिरता धारण कर लेती। झील शांत रहना चाहती थी, स्थिर रहना चाहती थी। वह चारों ओर से बाहें फैलाए पहाड़ के आगोश में आलिंगन का सुख उठाना चाहती थी। झील अपनी गहराई में लीन रहना चाहती थी। यही तो झील की प्राकृतिक सुंदरता थी, जो पर्यटकों को अपनी ओर खींचती थी। लोग झील को देखकर आनंद लेते थे और झील आंखें बंद किए अपने प्रियतम की बांहो में बेफिक्र आनंद में खोई थी।
काफी देर तक झील की सुंदरता निहारने के बाद झील के किनारे से बने टॉड रॉक को जाने वाले सीढ़ीनुमा रास्ते पर चल पड़े। ऊंचाई पर मेंढक की आकृति वाली यह चट्टान बरबस अपनी ओर खींच रही थी। झील के आस पास घूमते घामते पैरों में जान तो बाकी नहीं थी परंतु झील के आसपास के रमणीक स्थान आज ही देखना मजबूरी भी थी क्योंकि कल सुबह देलवाड़ा जो जैनों का तीर्थ स्थल है, और दस अन्य स्थलों पर घूमना तय था। नीचे से ही पानी की दो बोतलें खरीद कर चढ़ाई शुरू की। रास्ते में विवेकानंद रॉक पड़ा, कहा जाता है कि विवेकानंद ने यहां रहकर कुछ समय आध्यात्म का ज्ञान अर्जित किया था। जैसे तैसे टॉड रॉक को नजदीक से निहारने की तमन्ना भी पूरी हुई। ऊपर पहुंचकर थकान तो रफूचक्कर ही हो गई । टॉड रॉक पर इतनी शीतल हवा थी कि वहां बैठकर कुछ सुकून सा मिला। शांति का संदेश देती शीतल हवा तन और मन दोनों को एकाग्र कर रही थी। पत्नी और बेटा के चेहरे खुशियां आसानी से पढ़ी जा सकती थीं। सैकड़ों की संख्या में मौजूद सैलानी टॉड रॉक की सुंदरता के साथ मंद मंद बह रही शीतल बयार में उल्लास से भरे हुए प्रतीत होते थे। यहां से नीचे माउंट आबू शहर और झील अत्यंत मनोहारी लग रहे थे। अब सूर्यास्त भी होने ही वाला था। पेट में चूहे भी कूदने लगे थे, दिमाग में अब सिर्फ खाने की बातें टिक रहीं थीं इसलिए बिना देरी किए नीचे आकर होटल की ओर चल पड़े। आधा रास्ता ही तय किया होगा कि छोटा ढाबा की और चल पड़े मन बनाया था कि अपने होटल के कमरे में फ्रेश होकर वहीं के रेस्टोरेंट में खाएंगे लेकिन यहां भोजनालय वाले की राशि में बृहस्पति प्रवेश कर गयी थी शायद, । पूरी सड़क एक नदी में तब्दील हो चुकी थी। शाम अपने अंतिम पड़ाव की ओर थी, भूख अपने चरम बिंदु पर थी तो लिहाजा उसी भोजनालय में मजबूरन खाना खाया। सिर से पांव तक पानी से तरबतर थे, तुरंत कपड़े बदल कर रजाई में घुस गए।
रात आने वाली सुबह के इंतज़ार में बड़ी लंबी लगी, क्योंकि चार नई रोमांचक जगहों पर जाना था, जो हमारे लिए जिज्ञासा का विषय बने हुए थे। जल्दी होटल में ही बने रेस्टोरेंट में दाखिल हुए। एक्सप्रेस गाड़ी की रफ्तार से नाश्ता कर सोमनाथ महादेव मंदिर की और पैदल ही चल पड़े माउन्ट आबू दर्शन हेतु महत्वपूर्ण जानकारियां प्रदान कर गाइड का इशारा पा सारे पर्यटक उतरकर विशाल शिवलिंग को निहारने लगे। बहुत बड़ी शिवलिंग जिसकी विशेषता थी कि एक ही पत्थर की बनी हुई थी, उसमें कहीं कोई जोड़ नहीं था। शंकर मठ से सीधे माउन्ट आबू की प्रमुख पहचान बन चुके ब्रह्मकुमारी आश्रम जा रुके और अवतार भाई जी से मिलना हुआ। शांति के मार्ग पर चलने की राह दिखाने वाला और आत्मिक शुद्धता का प्रचार प्रसार करने वाला यह स्थान बहुत विशेष ही था। देश विदेश के लाखों लोग प्रतिवर्ष यहां शांति की खोज में आते हैं।यूनिवर्सल पीस हाल बहुत वृहताकार में निर्मित किया गया है जिसमें बैठकर हज़ारों की संख्या में लोग उपासना कर सकते हैं। चूंकि हमें आज ही सारे स्थान देखने थे, ने भी समय से बांध रखा था अतः केवल अवलोकन करना था। इसके बाद ऊंचे ऊंचे पहाड़ों के बीच बस धीरे धीरे बढ़ने लगी, बाहर का दृश्य ऐसा प्रतीत होता था जैसे हमारे साथ ही पहाड़ भी चल रहे हों।पैदल जाते बीच कई प्रकार के वीडियो बनाये मनोरंजक बातों से यात्रियों का मन भटकाने की भरपूर कोशिश कर रहा था, लेकिन जब जान जोखिम में हो तब मीठी बातें भी कहाँ अच्छी लगतीं हैं, ईश्वर का नाम लेकर भयंकर मोड़ों पर जब कोई गाड़िया मुड़ती तो कभी कभी तो लगता गाड़ी गिर ही जाएगी। पहाड़ी लोगों की जिंदगी में ये रोज के खेल हैं। जिंदगी की जद्दोजहद ने मौत से लड़ना सिखा दिया था उन्हें। रोटी के लिए आदमी खुद रोकर भी दूसरों को हंसाने का प्रयास करता है। अचानक हम रुके और, दूर पहाड़ी पर अर्बुदादेवी का मंदिर था, सभी हिन्दू यात्री थे तो चल पड़े दर्शन को।किसी ने बताया पौराणिक परंपरा के अनुसार पार्वती के शरीर का अधर यानि होंठ इस स्थान पर गिरा था इसलिए यहां की भाषा में इसे अर्बुदा कहते हैं। यह 51 शक्तिपीठों में से एक है।नौ देवी रूपों में से एक कात्यायिनी मां के रूप में देवी की पूजा अर्चना की जाती है। बहुत सी कथाएं इस शक्तिपीठ के बारे में प्रचलित हैं। सीढियां चढ़ते चढ़ते चोटी का पसीना पांव तक आ गया था लेकिन ऐसा लग रहा था जैसे सीढियां द्रौपदी के चीर की तरह बढ़ती चली जा रहीं थीं। मां की शक्ति मिली और हम चढ़ते चले गए। बाद में दोस्तो ने बताया कि सीढियां 350 थीं।अधर देवी का आशीर्वाद पाकर ससोमनाथ महादेव के दर्शन किए। के अवशेष आज भी वहां मौजूद हैं। यहां मेवाड़ के राणा कुम्भा ने एक पहाड़ी पर किले का निर्माण कराया था।सोमनाथ महादेव के अंगूठे को पूजा जाता है। इसे जैन तीर्थ भी कहा जाता है।
सोमनाथ महादेव के दर्शन कर हमलोग विश्वप्रसिद्ध दिलवाड़ा के जैन मंदिर पहुंचे। स्थापत्य कला का अद्भुत प्रदर्शन था यहां। दिलवाड़ा के मंदिर में सफेद संगमरमर पर नक्काशी और कलाकृतियां बरबस ही लोगों को अपनी ओर आकृष्ट कर रही थीं। मंदिर में मोबाइल पर्स इत्यादि वर्जित था। तो पहले अपने मित्र रतन के पास बेग रख कर गए थे द्वार पर ही आवश्यक दिशा निर्देश बताकर मंदिर के ही पुजारी अंदर ले गए। एक एक बात बारीकी से बताई गई।
1031 ई0 में पहाड़ियों के बीच बने ये मंदिर बहुत अद्भुत और अकल्पनीय हैं। इतनी सूक्ष्म कलाकारी देखकर कोई भी व्यक्ति हैरत में पड़ जाएगा। एक एक कला देख कर वहां से हटने का मन ही नहीं कर रहा था।
अगर प्राकृतिक सौंदर्य की बात की जाए तो माउन्ट आबू का सबसे रमणीक स्थान शूटिंग पॉइंट था। अचलेश्वर के बाद से ही आसमान में काले भूरे बादल अठखेलियाँ खेलने लगे थे। जैसे जैसे हमारी आगे बढ़ना तय कर रहे थे, तो बादलों का रंग और गहरा होता जा रहा था, ऐसा लग रहा था ये बादल हमको रोकने के लिए चारों ओर से घेरने की कोशिश कर रहे हों। जी कर रहा था इन बादलों को बाहों में भर के साथ ले चलूं। शूटिंग पॉइंट पर हम रुकते उससे पहले उससे पहले वापस जाने की चिंता जताने लगी।कुछ यात्री गुरुशिखर की ओर आगे बढ़ रहे थे।पर हम बिना देखे ही वापस आना तय किया।, हम लोग प्रकृति के हर आनंद को करीब से पाना चाहते थे इसलिए फोटो खींचते हुए।बादलों में शूटिंग पॉइंट का मज़ा दूना हो गया था। भाइयों ने बताया इस स्थान पर कई फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है। प्रेमी-प्रेमिकाओं की पहली पसंद है यह स्थान माउंट आबू में। मौसम जब खुद हसीन हो जाए तो जवां दिलों में उथल-पुथल होना स्वाभाविक सी बात है। यहां आने वाले युगल एक यादगार तस्वीर जरूर लेते हैं, अपने हमदम के साथ। खूबसूरत पलों की मोबाइल में कैद कर हमने वहां जैन धर्मशाला में भोजन किया। और भोजन का स्वाद ही अलग था हमारे साथी रमेश फूल लापसी खाई और हम सब ने आराम से भोजन किया फिर पेमेंट देते हुए वापस बस स्टैंड की ओर पैदल ही चल पड़े। हम समुद्र तल से 5650 फुट भगवा विष्णु के 6वे अवतार के रूप में पूज्य गुरु दत्तात्रेय की चरण पादुकाओं को स्पर्श कर छोटे से मंदिर में दर्शन पाकर वहां की ठंडी हवाओं में सुकून की आहट को महसूस किया। यहां से नीचे की ओर देखने पर हर चीज एक खिलोने की भांति प्रतीत हो रही थी। रास्ते में चल रही बसें ऐसे दिख रहीं थीं जैसे किसी खिलौने वाली बस में चाबी भरकर छोड़ दी हो। ऊंचाई पर पहुंचना आसान होता है लेकिन वहां टिके रहना बहुत कठिन होता है, यहां आकर ये महसूस किया। शीघ्र ही हम लोग नीचे उतरने लगे।दोहपर के12बज चुके थे हम वहां से वापस बस में बैठ गए, पुनः नक्की झील पर आए। शाम को जलती हुई लाइटों में झील स्वयं नहाई हुई थी।वहां से सिरोही की पुनः बस पकड़नी थी ।3बजे ही सिरोही की और बस पकड़कर सिरोही, और वहां से बस द्वारा जालोर। जालोर से पैदल कमरे की और, कमरे पर आने के बाद इतनी थकान महसूस हो रहीं थी तो रात्रि में तुरन्त सो गए।
बहुत शानदार यात्रा रही हैं हमारी।।
शंकर आँजणा नवापुरा धवेचा
बागोड़ा जालोर-343032
कक्षा-स्नातक तृतीय वर्ष