देने को जब कुछ नहीं ,धोखा देते लोग
देने को जब कुछ नहीं ,धोखा देते लोग
इनके मुखड़े पर दिखे , छल प्रपंच का रोग
माँ के कडुवे बोल भी , मानो प्रभु आशीष
सीख सही देती सदा , जनु भू पर जगदीश
हरदम चालाकी नहीं ,कर सकता इंसान ।
बाजी अंतिम हाथ में , खुद रखता भगवान
वक्त वही ,तन्हाई भी, रात वही , प्रतिघात।
यादें जो फीकी पड़ी , उभर गईं उस रात।
सूरज सिखलाता हमें , रोशन हो संसार ।
बांटे आभा , ताजगी , मन सबके उजियार।।