देता हूं दुआएं कि यार तुमको प्यार हो!
मधुरिम खिला खिला दिल का बहार हो।
देता हूं दुआएं कि यार तुमको प्यार हो!!
क्या क्या नहीं दिखा था साथ ख्वाब में
हां चांद उतर आई थी हमार नाव में
लगती थी धूप तो हम छाते को फेंककर
बैठ जाते थे उन्हीं के देह के छाव में।
आंखें न हो कभी नम, न चेहरा उदास हो
हाथों में हाथ हो तुझे हमदम का साथ हो!
मधुरिम खिला खिला दिल का बहार हो।
देता हूं दुआएं कि यार तुमको प्यार हो!!
वर्षों वर्षों बाद मिलते थे हम कभी कभी
ऐसा लगता था मेहमान आया गांव में।
बैठे बैठे हम उड़ते थे आसमान में
ऐसा लगता था पंख लग गए हैं पांव में।
हमको पता है दर्द सितम विरह के पल के।
हमने जिया है जैसे मछली बिना जल के ।
मधुरिम खिला खिला दिल का बहार हो।
देता हूं दुआएं कि यार तुमको प्यार हो!!
कवि दीपक झा “रुद्रा”