देख लेना चुप न बैठेगा, हार कर भी जीत जाएगा शहर…
मेरी कलम से…
आनन्द कुमार
बहुत परेशान है शहर, यह जुल्मी ने कैसा ढाया क़हर,
अब भी बचा है सफर, आ लौट आ पहर दो पहर।
जो बदनाम हो रहा, उसकी कोई गलती ना थी,
जो गुमनाम है, वह आकर कह दे मेरा था यह हुनर।
ख़ामोश हो जाओ तुम उसकी ऊर्जा को न ललकारो,
वह ईमानदार होकर चला था कि लगाऊँगा मैं शजर।
अब तों उसको अपनों और ग़ैरों ने दिया है सबक,
देख लेना चुप न बैठेगा, हार कर भी जीत जाएगा शहर।