देख परीक्षा पास में
देख परीक्षा पास में,अचरज में कुछ बाल।
अब ऐसा मैं क्या करूं,बने उचित मम ढाल।।
कठिन परीक्षा लग रही,कैसे हो यह पार।
रखकर पुस्तक सामने,करता करुण पुकार।।
शिक्षण का था जो समय,किया हास परिहास।
देख परीक्षा सामने, डिगा आत्म विश्वास।।
पूर्व पढ़ा भी भूलते,करते बहुत विलाप।
मंदिर मस्जिद जा करें, ईष्ट नाम का जाप।।
सोचें अंतस में बहुत,समय गवाँया व्यर्थ।
किया हास परिहास जो,नहीं लगा अब अर्थ।।
बहुत बार गुरु ने कहा,रखो समय का ध्यान।
नहीं सुनी उनकी कभी,बिगड़ा वहीं विधान।।
बात समझ अब आ रही,हुई बहुत पर देर।
समझा मैं अब सार यह,समय जगत का शेर।।
ओम प्रकाश श्रीवास्तव ओम
कानपुर नगर