—देख तमाशा लकड़ी का —
जीवन जब शुरू हुआ
तो लकड़ी के साथ ही हुआ
और जब अंत हुआ
तब भी लकड़ी के साथ हुआ
संस्कार हुए तो लकड़ी से हुए
खेलना सीखा तो लकड़ी से सीखा
लिखना सीखा तो लकड़ी से लिखा
बिना लकड़ी भला जिंदगी क्या
शुभ महूरत हुए तो
लकड़ी ने हवन कराया
घर में दुल्हन लाये तो भी
वो पलंग लकड़ी का लाई
स्कूल गए तो लकड़ी पर
ही बैठे और पढ़े लिखे
मैदान में बल्ला चलाया
तो भी लकड़ी से रन बनाये
जिंदगी भर साथ निभाया
भुला तो भी किसी ने याद दिलाया
मर कर भी दफन कर दिआ
तो सब से ज्यादा साथ निभाया लकड़ी ने
इस लिए मेरे दोस्तों,
जिंदगी छोड़ने से पहले
एक पेड़ तो लगा जाना
धरती पर थोड़ा सा कर्ज तो उतार जाना !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ