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2 Jul 2017 · 2 min read

देखो-देखो…प्रकृति ने अपना घूंघट हटा लिया है…

बहुत गर्मी है, लेकिन ये प्रकृति हमारी तरह बैचेन नहीं है, वो खिलखिला रही है, अभी-अभी मैंने देखा कि वो एक वृक्ष पर पीली सी मोहक मुस्कान बिखेर रही थी, वो तो तब पता चला जब मैं वहां उसे निहार रहा था तभी हवा के झोंके साथ प्रकृति का घूंघट हट गया और वो उसकी सुनहरी आभा मन में गहरे उतर गई। वो गर्म मौसम में गर्म हवा के साथ खिलखिलाती हुई बतिया रही थी, बीच-बीच में अपनी ही सुनहरी आभा वाले उन पुष्प गुच्छों में उंगलियां भी घुमा लिया करती…। ओह कितनी मोहक थी, कितनी सादगी और कितना तेज…। ये उसका अंदाज है, संदेश है, सबक है, हमारे लिए अध्याय है जो समझाता है कि जिंदगी का मौसम भले तपने लग जाए, रेत भरी आंधियां हमारे धीरज को बार-बार धराशाही करने की कोशिश करें, बावजूद इसके हमें इंतजार करना चाहिए। कुछ तो है जो हमारे अंदर बेहतर होता है, कुछ तो है जो हमें तपे हुए मौसम में भी शांत और मौन रख सकता है….। वो प्रकृति अपने आत्मबल के सहारे ही इस गर्म मौसम में सुनहरी आभा पाकर दमकती है, हम भी दमकते हैं यदि हम उसी तरह सोचते हैं, जीते हैं, परिवार और समाज रचते हैं…। हम जिंदगी के उस मूल बिंदू को पहचानें जहां से वो घूमती है, छांव और धूप तो रोज नजर आते हैं, सुख और दुख कुछ लंबे और छोटे हो सकते हैं, लेकिन अहम बात ये है कि हम ये जिंदगी जीते कैसे हैं, हम खुशी किसे मानते हैं, हमारे लिए महत्वपूर्ण क्या है ?
मुझे लगता है ये सब जवाब हमें ये प्रकृति स्वयं देती है, देखो उसके इस तपिश भरे मौसम में खिलखिलाते चेहरे को देखो…ऐसा नहीं है कि प्रकृति का जीवन बिना तपिश वाला होगा, मौसम तो उसके लिए भी बदलते हैं, रेगिस्तान तो उसके कालखंड का भी हिस्सा है…बस वो खुश रहना जानती है, वो आज में जीती है, वो किसी कल को नहीं गढ़ती, वो उस आज की स्वर्णिम आभा में ही दमकती है…।

Language: Hindi
Tag: लेख
576 Views
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