देखें क्या उधर है
सीप में मोती मिले या न मिले
दीप में ज्योती मिले या न मिले
पेट को कर कैद में चल दे मुसाफ़िर
आज फिर रोटी मिले या न मिले
खोल आँखें,तेज चल,ज़रा देख तो
जाकर कहाँ रुकती
ये दरिया की लहर है
चल चलें उस पार देखें क्या उधर है
क्या वहाँ पर भी यही पीड़ा रजे
मृत्यु की ताज़िन्दगी वीणा बजे?
रिश्ते,धन-दौलत औ शोहरत की वहाँ भी
ऐसी ही प्रतिदिन कोई क्रीड़ा सजे?
झिलमिलाते झालरों से हैं सितारे
क्या उधर भी
कोई सुन्दर सा शहर है
चल चलें उस पार देखें क्या उधर है
हो जाये शायद तृप्त मन उस लोक में
क्यों भला बैठे रहें हम शोक में
बन विदेह निकल चलें निश्चित ही अब
सत्य की कर खोज आ आलोक में
मंजिल का तज कर मोह चल
थक बैठ मत लम्बा बहुत शायद सफ़र है
चल चलें उस पार देखें क्या उधर है