देखि बांसुरी को अधरों पर
देखि बांसुरी को अधरों पर,
सोच रही है राधा।
पिया मिलन अब कैसे संभव,
सम्मुख दिखती बाधा।।
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मन में व्यथित हुई घबराती।
अनमन अंदर जाती ।।
एक रैन भी कान्हा के बिन,
नहीं चैन वो पाती।
सोच रही वो मन ही मन में
कैसे जाये साधा।
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कान्हा तो अब वशीभूत है,
इस सौतन के वश में।
नहीं दिखाई देती मैं भी,
डोल रहा ज्यों गश में।
अब तो बस इतना हो जाये
मिल जाए बस आधा।
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देखि राधिका चिंतन करती
सोचे मन ही मन में।
अधरों का रस पान करे वो
आग लगाती तन में।
कैसे भी हो जाये मिलना
मिट जाये यह बाधा ।
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