देखते सबकी हम ख़ूबियाँ इसलिए
देखते सबकी हम ख़ूबियाँ इसलिए
जान लें अपनी हम ख़ामियाँ इसलिए
हम तो मासूम से आम इंसान हैं
हमसे होती रहीं ग़लतियाँ इसलिए
याद में डूब जाना सुकूंबख़्श है
भा रहीं हैं ये तन्हाइयाँ इसलिए
गुफ़्तगू कर रही हैं नज़र से नज़र
हम को प्यारी हैं ख़ामोशियाँ इसलिए
प्यार के दीप बुझ ही न जाएँ कहीं
रोक नफ़रत की ये आँधियाँ इसलिए
हार कर भी कमी हौसलों में नहीं
जीतनी हैं अभी पारियाँ इसलिए
उम्र थी माँगनी चाँद से प्यार की
अर्चना को सजीं थालियाँ इसलिए
फूल खिलते रहें हर तरफ हर घड़ी
‘अर्चना’ बन रहीं क्यारियाँ इसलिए
डॉ अर्चना गुप्ता (52)