देखकर तुम न यूँ अब नकारो मुझे…!
देखकर तुम न यूँ अब…., नकारो मुझे
अक़्स हूँ मैं तुम्हारा……, सँवारो मुझे।
दाग दामन पे’ मेरे.., लगे हैं…, अगर
हक तुम्हारा है तुम ही.., निखारो मुझे।
हूँ परेशां बहुत.., दर्द से…, इस क़दर
इल्तिज़ा है यही तुम….., दुलारो मुझे।
जिंदगी इक जुआ है.., ये माना मगर
आसरा बस तुम्हारा….., न हारो मुझे।
तोड़ दो बंदिशें सब., मुहब्बत की तुम
नाम लेकर के मेरा……, पुकारो मुझे।
ख़ून दिल का पिला कर लिखी ये ग़ज़ल
कह रही आप सब से…., निहारो मुझे।
इक “परिंदा” सफ़र का,, मैं नादान सा
छोड़ दो बेज़ुबां हूँ……., न मारो मुझे।
पंकज शर्मा “परिंदा”