दृढ़
छला जाना तो प्रारब्ध में था,
मेरे कर्मों ने कभी मुझको हारने न दिया।
व्याध बैठे है यहां घर घर में,
एक निरीह को भी मैंने मारने न दिया।।
जय हिंद
छला जाना तो प्रारब्ध में था,
मेरे कर्मों ने कभी मुझको हारने न दिया।
व्याध बैठे है यहां घर घर में,
एक निरीह को भी मैंने मारने न दिया।।
जय हिंद