दृढ़ संकल्पी
शीर्षक- “दृढ़ संकल्पी”
भाग्य विधाता दृढ़ संकल्पी, माने कभी न हार।
चट्टानों से अटल इरादे, भुजबल का आधार।।
संकल्पों के पंख पसारे, भरता उच्च उड़ान।
झेल आँधियाँ धूल, बवंडर, सदा बनी पहचान।।
तूफ़ानों में दीप जलाकर, दूर करे अँधियार।
चट्टानों से अटल इरादे, भुजबल का आधार।।
दृढ़ प्रतिज्ञ ज्यों भीष्म पितामह,बना धैर्य प्रतिमान।
हनुमत के सम शैल उठाकर, करे नहीं अभिमान।।
लक्ष्य साध मंज़िल तक पहुँचा,संकल्पित व्यवहार।
चट्टानों से अटल इरादे, भुजबल का आधार।।
भागीरथ-सा कर्मवीर नित, रचता नवल विधान।
अवरोधों से जा टकराया, बढ़ा दिया कुल मान।।
कठिन तपस्या भू पर लाई, गंगा की जल धार।
चट्टानों से अटल इरादे, भुजबल का आधार।।
गर्जन करता सिंह दहाड़े, दुश्मन हों भयभीत।
दृढ़ निश्चय वाला निज बूते,पाता हरदम जीत।।
अंतस् में विश्वास अनूठा, प्रबल शक्ति आगार।
चट्टानों से अटल इरादे, भुजबल का आधार।।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
वाराणसी (उ. प्र.)