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31 Mar 2019 · 1 min read

दूर नगरी

गीत
दूर बहुत है नगरी तेरी, आ ना पाऊँ मिलने को।
साँझ ढले तुम आ जाती हो, नयनों बीच टहलने को।
ले स्पर्श आपका हरदिन,आ जाती बहती पुरवाई।
सुखद ऋतु की हिस्सेदारी, ने आतुरता खूब बढ़ाई।
उद्यानों के पुष्प सुकोमल, व्याकुल बहुत महकने को।
दूर बहुत है नगरी तेरी, आ ना पाऊँ मिलने को।।

सर्वविदित है सरिता तट -सा, यह जो प्रेम हमारा है।
सदा जीतने वाला ये मन, एक तुम्हीं पर हारा है।
शून्य हृदय की दुनिया मेरी, एक तुम्हीँ हो रहने को।
दूर बहुत है नगरी तेरी, आ ना पाऊँ मिलने को।।

भाव -भूमि से तुम परिचित हो, ना ही हम अनजाने हैं।
मैं अभिव्यक्ति भाव की कर दूँ, प्रतिफल के हरजाने हैं।
काल चक्र की हटा अवनिका, आओ इसे बदलने को।
दूर बहुत है नगरी तेरी, आ ना पाऊँ मिलने को।।

पढ़कर गीत समझती सब हो, मन ही मन मुस्का लेती।
अंतर्मन के भाव भाँप कर, टेढ़ा प्रति-उत्तर देती।
लालायित मुख में रहते पद, तत्पर हृदय मचलने को।
दूर बहुत है नगरी तेरी, आ ना पाऊँ मिलने को।।
अंकित शर्मा ‘इषुप्रिय’
रामपुरकलाँ, सबलगढ़, मुरैना(म.प्र.)
मो.- 9516113124

Language: Hindi
Tag: गीत
8 Likes · 520 Views
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