दूर चकोरी तक रही अकास…
चाँदनी सोयी चाँद के पास।
दूर चकोरी तक रही अकास।
सुध भी चाँद ने ली न उसकी,
बीते कितने दिन और मास।
गुमसुम-गुमसुम खोई-खोई,
भूली-बिसरी होशोहवास।
घेरे बैठी बदली गम की,
रहे न अब वे हास उल्लास।
रहे सिमटकर इक कोने में,
आए न उस बिन कुछ भी रास।
नंगे पाँव चला आएगा,
लेगी जब वह आखिरी सांस।
स्पंदन प्राणों में होगा,
मिल जाए जो तनिक उजास।
फिर वो दिन वो रातें होंगी,
सलामत सदा रहे विश्वास।
‘सीमा’ असीम सुख की होगी,
कितना मधुर- मोहक अहसास !
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद