दूर किसी वादी में
मैं तो बहुत थका-हारा हूं
कुछ देर सोना चाहता हूं
शायद जी हल्का हो इससे
खुलकर रोना चाहता हूं…
(१)
अपनों और बेगानों से
जो दाग़ मिले हैं दिल को
आंसुओं की बारिश में
उन्हें धोना चाहता हूं…
(२)
जहां किसी की यादें भी
मुझ तक पहुंच न पाएं
कहीं दूर किसी वादी में
जाकर खोना चाहता हूं…
(३)
शहर की भीड़भाड़ और
शोर-गुल से निकल कर
अपने आप में पूरी तरह
लीन होना चाहता हूं…
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Shekhar Chandra Mitra
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