दुविधा
संघर्षपूर्ण है मेरा जीवन,
विश्वनाथ नगर की गलियों मे,
एक तरफ है माँ का आँचल,
एक तरफ कर्तव्य खड़ा है,
है दुविधा अब मेरी,
किसको गले लगाऊँ,
या किसका भेदन कर डालूँ मैं
नंगी तलवार है कर में,
घुसाना होगा, आँचल या कर्तव्य के धर में ,
हे आँचल, कर्तव्य मुझे निभाने दे,
थोड़ा और वजन गिर जाने दे,
गीता में कृष्ण कही यह बात,
कर्म करो हम हैं तेरे साथ,
समाचार नहीं , इतिहास बन जाएगी,
जब जब होगी, चर्चा उसकी, तेरी बेटी कहलाएगी,
जब लिखी जाएगी राम की गाथा,
कौशल्या ही होगी उसकी माता,
तेरी त्याग सुगंध मिलेगी,
कमल कुसुम की कलियों मे,
संघर्ष पूर्ण है मेरा जीवन,
विश्वनाथ नगर की गलियों में।
हे कर्तव्य ममता को गले लगाने दे,
उसे भी, थोड़ा मन बहलाने दे,
हे जीवन उस ममता का ऋणी,
तु कर्म, आज नेह क्या? आँसू भी छिनी,
उस देह का क्या होगा मोल,
जब आँचल भी हाट मे दिया तौल,
है कर्तव्य , निर्मित तु किस माटी,
हृदय को शरीर से ही काटी,
क्षण भर पाने दे आँचल नेह,
फिर कर्म सागर बहेगी,
पतली सी काँच की नलियों में,
संघर्ष पूर्ण है मेरा जीवन,
विश्वनाथ नगर की गलियों में ।
उमा झा