#दुलारन की चाह
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★ #दुलारन की चाह ★
सुख-दुख नित के मेले
सब वेले-कुवेले
पीरपुष्प हतभागेकंटक
तूने सारे तनमन झेले
चिरविरही रहे मुझसे
खलि खेल खेले
खो न कहीं जाऊं मैं
ले ले गोद ले ले . . . . . !
गईया और गोचरांद
खिड़कियां दीवारें फांद
रातों में दो मिले
इक चोर इक चाँद
थके-थके दो नयन
और तेरी बांहों के झूले
खो न कहीं जाऊं मैं
ले ले गोद ले ले . . . . . !
जीवीथियां बुहारियां
सुधि मेधा हमारियां
ज्ञान-मानरंग भीजती
सीखदीख पिचकारियां
स्वाति की इक बूंद
सिप्पियों के रेले
खो न कहीं जाऊं मैं
ले ले गोद ले ले . . . . . !
प्रभातफेरियां गांवनगर
पांव चूमते डगर-डगर
हिरदे-हिरदे बसे
भगीरथ और सगर
मीठे-मीठे फल बेरियां
हँस हँस झेलें ढेले
खो न कहीं जाऊं मैं
ले ले गोद ले ले . . . . . !
जगती की हाट बड़ी
धनिकों की ठाट बड़ी
दूर-दूर छाँव नहीं
सांसों में प्यास बड़ी
तू बरखाबुंदियन जैसी
बिन पैसे बिन धेले
खो न कहीं जाऊं मैं
ले ले गोद ले ले . . . . . !
दुलारन की वो लड़ियां
गीतों की फुलझड़ियां
रेणुसम फिसल गईं
पलछिन और वो घड़ियां
हाथों बातों का सूनापन
सपनों से भर चले
खो न कहीं जाऊं मैं
ले ले गोद ले ले . . . . . !
प्रश्न बीनती मनुज की हाँ
रौरव उड़ते धुआं धुआं
बल विक्रम दो पूत जने
शतरूपा और मेरी माँ
आदिअंत पसरे उजियारा
प्राचीअस्ताचल भले-भले
खो न कहीं जाऊं मैं
ले ले गोद ले ले. . . . . !
#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०-१७३१२