दुर्मिल सवैया
दुर्मिल सवैया ( सगण× 8)
पहचान यही नर कर्मठ की वह बैठ नहीं कर को मलता।
रह धीर गँभीर करे हर काम दिखे न कभी अति आतुरता।
जिसका श्रम संबल भाग्य नहीं वह दीपक-सा रहता जलता।
मत मान पराजित मानव जो थक बैठ गया चलता-चलता।।
दुर्मिल सवैया ( सगण× 8)
पहचान यही नर कर्मठ की वह बैठ नहीं कर को मलता।
रह धीर गँभीर करे हर काम दिखे न कभी अति आतुरता।
जिसका श्रम संबल भाग्य नहीं वह दीपक-सा रहता जलता।
मत मान पराजित मानव जो थक बैठ गया चलता-चलता।।