दुर्मिल सवैया
जय मां शारदे 🌹
दुर्मिल सवैया
सगण×८
उपसर्ग सभी अनुरूप नही,सब वाक्य नहीं मनभावन थे।
सब प्रत्यय भीग गये जल से, अनुभाव सभी अब सावन थे।
अवरूद्ध हुई कविता मन की,वह शब्द कहाॅं अब पावन थे।
अब राम कहाॅं रहते जग में,सब ओर बसे बस रावन थे।
कामिनी मिश्रा अनिका कानपुर