दुर्मिल सवैया
दुर्मिल सवैया
प्रतिभा कविता बन के बहती सरिता अति शीतल नीर दिखे ।
य़ह पुण्य सरोवर कूल सदा प्रतिभा बहुधा शिव लेख लिखे।
दिल की दरिया प्रतिभा ममता समता बन रंग दिखावत है।
वह प्रेरक भूमि पवित्र सदा प्रिय को कवि पाठ पढ़ावत है।
प्रतिभा जिसकी प्रिय मीत बने वह सभ्य सुशील कहावत है।
जिसमें प्रतिभा अनमोल छिपी वह ज्ञान समुद्र बहावत है।
प्रिय सागर गंग अगाध बना सबको मृदु नीर पिलावत है।
नित निर्मल हो रहता रसिया सबको प्रिय नृत्य दिखावत है।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।