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20 Mar 2018 · 2 min read

दुर्भाग्य प्रदत कुपोषण

दुर्भाग्य प्रदत्त कुपोषण
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नौएडा मजदूर चौक जहाँ प्रति दिन सुबह से लेकर साम तक चिलचिलाती धूप हो, कड़ाके की ठंढ हो या फिर बारिश का मौसम यहाँ रोजीरोटी की तलाश में दिहाड़ी मजदूरों का जमघट सा लगा रहता है ………लोग आते हैं जिन्हें जिस कार्य के लिए दिहाड़ी मजदूर की जरुरत होती है बुला कर ले जाता है……..पिछले तीन दिनों से रामलाल यहाँ आ रहा था किन्तु दुर्भाग्य उसका उसे काम पर बुलाने कोई नहीं आया।

और कोई दिन होता तो शायद वह इतना परेशान न होता किन्तु इतने बड़े शहर में रहने के बाद भी उसकी लुगाई जो वर्तमान समय में पेट से थी कुपोषण के कारण बीमार हो गई थी……चिन्ता इस बात की भी की अगग यही हालात रहे तो गर्भवती के उदर में पलने वाला बच्चा कुपोषित हो कही विकलांग या बालपन से ही बीमार पैदा न हो जाय……किन्तु उसे अपने इस समस्या का कोई हल दूर – दूर तक नजर नहीं आ रहा था ।
दुलारी जबतक स्वस्थ थी एक दो घरो में बर्तन-भड़ीया, चूल्हा-चौका कर दो पैसे कमा लेती थी ……कुछ रामलाल लेकर आता घर खर्च बड़े आसानी से तो नहीं किन्तु चल रहा था कारण रामलाल को प्रतिदिन काम नहीं मिल पाता था।

दुलारी का अब सातवा महीना चल रहा था सरकारी अस्पताल के डॉक्टरों ने उसे उसके सेहत को देखते हुए काम करने से मना कर दिया था वैसे भी अगर डॉक्टर मना नहीं भी करते तो भी वह इतना कमजोर हो गई थी कि खुद को काम पर जाने की स्थिति में नहीं पा रही ऋथी। पिछले डेढ महीने में मात्र पन्द्रह दिन ही रामलाल को काम मिल पाया था ।

पैतालीस दिनों का घर खर्च , कमरे का भाड़ा, दवा दारू और इन पैतालीस दिनों में कमाये सिर्फ तीन हजार रुपये, इसपे डॉक्टर ने कहा था दुलारी को स्वास्थ्यवर्धक भोज्यपदार्थ, हरी साक, सब्जी, फल वगैरह इन आवश्यकताओं को पुरा कर पाने में रामलाल समर्थ नहीं हो पाया ……..कभी दो दिन सही चलता तो बीच में एक दो दिन उपवास करना पड़ता , प्रयाप्त पैसों की कमी के कारण एक गर्भवती महिला के आवश्कतानुसार उसके आहार की पूर्ति नहीं हो पाने के कारण दुलारी कुपोषण का शिकार हो बीमार पड़ गई।

वैसे भी इनके लिए यह कुपोषण, भुखमरी अभावग्रस्त जीवन के सगे संबंधियों जैसे है, इनसे इनका चोली दामन का रिश्ता है, आये दिन सरकारी फाइलों में कुपोषण से मुक्ति पाने की कई योजनाओं का उल्लेख किया जाता है कुछ योजनाएं क्रियाशील भी होती हैं किन्तु सही समय पर सही व्यक्ति तक पहुंच नहीं पाती और पैदा होने वाले बच्चे कुपोषण का शिकार हो या तो दिव्यांग पैदा होते हैं या फिर बालपन में ही बीमारियों से ग्रसित हो असमय काल का ग्रास बन जाते हैं।।……..
………………….

पं.संजीव शुक्ल “सचिन”
मुसहरवा (मंशानगर)
प.चम्पारण , बिहार

Language: Hindi
390 Views
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