दुर्गम
दुर्गम हिम शिखरों पर चढ़ना है माना आसान नहीं
और कभी मत नहीं सोचना आएंगे तूफान नहीं
लेकिन धृड निश्चय के बल पर बाधाये हट जाती हैं
नियति बना देती है रास्ता आते हैं व्यवधान नहीं
जैसे गुजरा है ये साल भी नया वर्ष भी फिर आयेगा
जिसकी सोच सार्थक होती उसको होता अभिमान नहीं
हम ऐसे थे अब ऐसे हैं नहीं सोचना कभी चाहिए
शीशा सत्य बताता हरदम होता कभी गुमान नहीं
क्या खोया है क्या पाया है समय आकलन करता है
विरल आदमी ही करता है खुद अपना गुणगान नहीं
सोच सोच कर खुश है खुद ही इतनी शोहरत पाई है
धन के बल से जो पाया है वह होता सम्मान नहीं
करता है विज्ञान तरक्की नए-नए गृह ढूंढ रहा है
पर दुनिया का कोई मानव हो सकता भगवान नहीं
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डॉक्टर इंजीनियर
मनोज श्रीवास्तव