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31 Dec 2024 · 1 min read

दुर्गम

दुर्गम हिम शिखरों पर चढ़ना है माना आसान नहीं
और कभी मत नहीं सोचना आएंगे तूफान नहीं

लेकिन धृड निश्चय के बल पर बाधाये हट जाती हैं
नियति बना देती है रास्ता आते हैं व्यवधान नहीं

जैसे गुजरा है ये साल भी नया वर्ष भी फिर आयेगा
जिसकी सोच सार्थक होती उसको होता अभिमान नहीं

हम ऐसे थे अब ऐसे हैं नहीं सोचना कभी चाहिए
शीशा सत्य बताता हरदम होता कभी गुमान नहीं

क्या खोया है क्या पाया है समय आकलन करता है
विरल आदमी ही करता है खुद अपना गुणगान नहीं

सोच सोच कर खुश है खुद ही इतनी शोहरत पाई है
धन के बल से जो पाया है वह होता सम्मान नहीं

करता है विज्ञान तरक्की नए-नए गृह ढूंढ रहा है
पर दुनिया का कोई मानव हो सकता भगवान नहीं
@
डॉक्टर इंजीनियर
मनोज श्रीवास्तव

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