दुमदार दोहे
दुमदार दोहे
दुनियां मुझसे ही चले, फिर भी पग जंजीर।
अंबर पर हम आ गए, मेरी क्या
तक़दीर ।।
आँख से आँसू झरते।
मुझे क्यों देवी कहते।
पूजी जाती आज भी,फिर क्यों लुटती लाज।
तार तार है जिस्म क्यों,दुख का उर में साज।।
रोज है अस्मत लुटती।
रहूं नित अंदर घुटती ।
अबला कहते हो मुझे, देखो अपनी और।
कायर जैसे हो लगे, खींचा दामन छोर ।।
शर्म क्या तुमको आती।
लाज जब मेरी जाती ।
समझ खिलौना बदन को, खेलते हो दिन रैन।
आत्मा छलनी हो गयी,पथराए हैं नैन।।
जानवर खुल्ले घूमे।
रूह के कातिल झूमे ।
अंधेरा है छा रहा, धरा रक्त से लाल।
कैसे हो उजियार रे, नारी है बेहाल।।
चमन में दानव ऐसे।
अमन भी होगा कैसे।
सीमा शर्मा