*जगत है रेलगाड़ी यह 【मुक्तक 】*
जगत है रेलगाड़ी यह 【मुक्तक 】
जगत है रेलगाड़ी यह , मुसाफिर नित पकड़ते हैं
सफर यह चंद घंटों का, मगर फिर भी अकड़ते हैं
यहाँ हर सीट पर कब्जा किसी का और कल होगा
बड़े नादान हैं जो सीट से खुद को जकड़ते हैं
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451