दुनिया धूल भरी लगती है
दुनिया धूल भरी लगती है
धूल-धूल ही चौतरफा है।
मन मलीन सुख-शांति सफा है।।
दुख की आँधी चलती देखा।
ईर्ष्या अग्नि दहकती देखा।।
है छल-क्षद्म यहाँ बहुतायत।
दुष्प्रवृत्ति का बढ़ता आयत।।
धू-धू सुलग रहा है सावन।
विघटित दूषित जगत अपावन।।
दुनिया सोती मोह निशा में।
पवन बह रहा द्वंद्व दिशा में।।
शिष्ट आचरण का टोटा है।
हर कोई सिक्का खोटा है।।
काव्य रत्न डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।