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7 May 2024 · 1 min read

दुनिया एक मुसाफिरखाना

दुनिया एक मुसाफिरखाना
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दुनिया एक मुसाफिर खाना लगा हुआ है आना जाना
नही जानता कोई यहाँ पर कितने पल है और ठिकाना

जब तक रहना इस बस्ती में काम करो कुछ परमारथ के
देखो प्यारे बहक पर जाना लगे कई मेले द्वारा स्वारथ के

इस मेले की चमक दमक में अपनी मंजिल भूल न जाना
दुनिया एक मुसाफिरखाना लगा हुआ है आना जाना

है सच्चा इंसान वही जो पथ भूलो को राह दिखाये
घोर निराशा दिखे जहाँ भी वहीं ज्ञान का दीप जलाये

जले दीप से दीप तभी तो जगमग हो संसार सुहाना
दुनिया एक मुसाफिर खाना लगा हुआ है आना जाना

हो सकता है अंत सफर में तुम्हे स्वयम ईश्वर मिल जाये
या फिर माया वेश बदल कर जन्म जन्म तुमको भरमाये

ये तो खेल उसी का प्यारे कोई न समझा कोई न जाना
दुनिया एक मुसाफिरखाना लगा हुआ है आना जाना
@
डॉक्टर इंजीनियर
मनोज श्रीवास्तव
11वीं रचना

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