-दुख
साथ में रहना, संग संग स्कूल जाना।
आकर साथ खेलना और स्कूल का होमवर्क मिल कर ही करना
दोनों भाई -बहन,करण और कामिनी की बहुत मजेदार और सुंदर दिनचर्या थी।दोनों जुड़वां भाई -बहन एक दूसरे के बिना नहीं रहते थे। कामिनी का जन्म दो-चार मिनट बाद हुआ था तो कायदे से करण बड़ा भाई हुआ, कामिनी उसे भाईही कहती थी।
उनकी मां को भी आसानी रहती थी दोनों आपस में ही अपनी सारी समस्याओं का समाधान कर लेते थे।
भाई बहन का रिश्ता था कभी -कभी लड़ाई भी होती थी मम्मी दोनों को डांट भी लगाती तो दोनों फिर एक होजाते।
आज राखी के दिन झूले पर बैठ कर कामिनी अपने भाई को बहुत याद कर रही थी उसकी आंखें भी नम हो गई…….आज त्योहार त्योहार-सा ही नहीं लग रहा था घर के सारे कमरों में सन्नाटा पसरा था…..सब बहनें अपने भाइयों को राखी बांधती हैं आज मेरा भाई मेरे पास नहीं है…..
काश! उस दिन हम दोनों बॉल खेलते हुए नहीं झगड़ते…
या बॉल मैं ले आती… मैं भाई को कूलर के पास नही जाने देती। मेरे भाई को करंट नहीं लगता… आज मेरा भाई मेरे पास होता याद करते हुए कामिनी की आंखें भर आईं।
उसकी मां जो बहुत उदास थी,उसने अपनी बेटी को अकेले झूले पर उदास होते देखा तो पास आई मां के आते ही कामिनी मां के लिपट कर सुबक -सुबक कर रोने लगी।
“मां मैंने भाई को ही बॉल लेने भेजा मां मैंने ही भाई को मारा है,मै बहुत बुरी हूं मां”कह कर रोने लगी उसकी ऐसी बातें सुनकर मां की आंखें भर आईं लेकिन अपनी बेटी को चुप कराते हुए बोली- “बेटा तुम अपने आप को दोषी मत कहो, यह तो विधाता की करनी है,जो करण हमें छोड़ कर चला गया, हमारा और करण का साथ इतना ही था,बेटा, हमारे लिए बेटे की कमी और तुम्हारे लिए भाई की कभी को कोई पूरा नहीं कर सकता तुम अपनी पढ़ाई पर ध्यान लगा कर करण का सपना पूरा करो।दस वर्ष की कामिनी बहुत समझदार हो गई।इस हादसे के बाद!!
मां कामिनी को समझाकर अपने कमरे के एक कोने में जा फूट कर रोने लगी….
सचमुच उसको कितना दुःख हुआ…
उसके बेटे की कमी को कोई पूरा नहीं कर सकता।
– सीमा गुप्ता, अलवर( राजस्थान)