दुख
दुख में हो … तो वहीं बने रहो
खुशियों की उम्र लंबी नहीं होती
~ सिद्धार्थ
बांझ दरखतों पर फूल नहीं खिलते
रेगिस्तानों में मोती झील नहीं मिलते
उफ़ुक़ पे जो दिखता है वस्ल ए निशाँ
असल में गगन ज़मीं से तो नहीं मिलते
~ सिद्धार्थ
दुख में हो … तो वहीं बने रहो
खुशियों की उम्र लंबी नहीं होती
~ सिद्धार्थ
बांझ दरखतों पर फूल नहीं खिलते
रेगिस्तानों में मोती झील नहीं मिलते
उफ़ुक़ पे जो दिखता है वस्ल ए निशाँ
असल में गगन ज़मीं से तो नहीं मिलते
~ सिद्धार्थ