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6 Dec 2021 · 1 min read

दुख होला झगरा कइला से

जब छोटी-मोटी बातिन पर कवनो घर में तकरार रही
आगे ना बढ़ी कबो हरदम झगरे में ऊ परिवार रही

हटि जाई रोज लड़ाई से
लइकन के ध्यान पढ़ाई से
ई लाइलाज बीमारी हऽ
जाई ना कबो दवाई से
नफरत के भाव रही भीतर ऊ मन कइसे उजियार रही
आगे ना बढ़ी कबो हरदम झगरे में ऊ परिवार रही

नजदीके चाहे फइला से
दुख होला झगरा कइला से
घरवा में कलह मचेला जब
ना खून बनेला खइला से
जवने घरवा के मनइन के मूँहे में बस अंगार रही
आगे ना बढ़ी कबो हरदम झगरे में ऊ परिवार रही

सनमत के भरबऽ प्याली ना
घर में आई खुशहाली ना
जोरन सनेह के ना डलबऽ
सुख के तू पइबऽ छाली ना
जहवाँ इक दूजा के मन में ना प्रेम भरल रसधार रही
आगे ना बढ़ी कबो हरदम झगरे में ऊ परिवार रही

– आकाश महेशपुरी
दिनांक- 04/12/2021

4 Likes · 2 Comments · 696 Views

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