दुख ही दुख है –
दुख ही दुख है –
दुख का कारण, क्या है? इसका पता लगाने
कपिलवस्तु से कुशीनगर तक जाना होगा !!
कुछ मीलों की इस यात्रा में,भूखे प्यासे लोग मिलेंगे
रोती चाहें , दुःखद कराहें,पीर मिलेगी रोग मिलेंगे
सच उपवासी और झूठ के,घर में छप्पन भोग मिलेंगे
सावधान होकर चलना है,कदम-२ पर ढोंग मिलेंगे!!
कई अपरिचित सी-पीड़ाएं , आँसू के समुद्र अनजाने
नाव बिना उसके भीतर तक जाना होगा ! !
एक ओर है घनी अमावस,एक ओर है पूरनमासी
एक ओर चंचल राजा है,एक ओर ठहरा सन्यासी
एक ओर सब कुछ असली है,एक ओर सब कुछ आभासी
उनका मध्य खोजना होगा,जो दो विन्दु विरोधाभासी ।।
इसी मध्य में रहकर,बुनने हैं जीवन के ताने बाने
बस्ती में रहकर भी मन वीराना होगा !।