*दुख का दरिया भी पार न होता*
दुख का दरिया भी पार न होता
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दुख का दरिया भी पार न होता,
सुख जीवन का सार न होता।
कदमों का चलना रंग लाया,
कसरत का फल बेकार न होता।
फूटी कौड़ी जो आँख न भाये,
मन में आदर सत्कार न होता।
जीने – मरने से कोई न डरता,
अंबर में गर करतार न होता।
मनसीरत नैया डूब जाती,
नौका में जो पतवार न होता।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)