Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
22 Dec 2023 · 3 min read

दुआ सलाम

लघुकथा

दुआ सलाम

“मे आई कम इन सर।” रमेश कुमार ने बैंक मैनेजर के कक्ष का दरवाजा खोलते हुए पूछा।
“यस, कम इन। आइए बैठिए। बताइए कैसे आना हुआ ?” बुजुर्ग बैंक मैनेजर ने कहा।
“सर, केवाईसी अपडेट और एड्रेस चैंज कराने के लिए आया हूँ। हाल ही में मैंने आपके शहर रायपुर के केंद्रीय विद्यालय में लेक्चरर के पद पर ज्वाईनिंग दी है। इसके पहले भोपाल में था।” रमेश कुमार ने कुछ डॉक्यूमेंट मैनेजर की ओर बढ़ाते हुए कहा।
“अच्छा तो आप रमेश कुमार जी हैं। लेक्चरर हैं केंद्रीय विद्यालय में।” मैनेजर ने कहा।
“जी सर। आधार कार्ड, पेनकार्ड, आई कार्ड और ट्रांसफर लेटर की कॉपी आपके हाथ में हैं। इनकी ओरिजनल कॉपी इस फाइल में है।” रमेश कुमार ने कहा।
“रमेश कुमार जी, क्या हम लोग एक दूसरे से परिचित हैं ?” मैनेजर ने पूछा।
रमेश कुमार ने कुछ देर दिमाग पर जोर डालने के बाद कहा, “नहीं सर। हो सकता है कि कभी आते-जाते पार्क, मार्केट, बस, ट्रेन या फ्लाइट में मिले हों, परंतु याद नहीं आ रहा है।”
मैनेजर ने मुसकराते हुए कहा, “लेकिन रमेश जी, हम तो पिछले एक-डेढ़ महीने से लगभग रोज ही सुबह-शाम मिलते रहे हैं और हमारे बीच लगातार दुआ-सलाम भी हो रही है। और आप कह रहे हैं कि हम परिचित नहीं।”
रमेश जी ने बहुत ही संयत भाव से कहा, “ओह ! तो ये बात है। दरअसल बात ये है सर कि मेरी रोज सुबह मॉर्निंग वॉक करने की आदत है। मैं अक्सर देखता हूँ कि बहुत से सीनियर सिटीजन अकेले-अकेले मॉर्निंग वॉक करते रहते हैं। मैं लगभग सभी सीनियर सिटीजन को ‘गुड मॉर्निंग सर’, ‘गुड इवनिंग सर’ बोल देता हूँ। किसी-किसी को राम-राम, जय श्री कृष्णा भी बोल देता हूँ। सर, मेरा ऑब्जर्वेशन है कि मेरा ऐसा कहने मात्र से ही उनमें से ज्यादातर लोगों के चेहरे खिल जाते हैं। शायद उन्हें लगता है कि चलो कोई तो हमें पहचानता है।”
मैनेजर साहब को रमेश कुमार की बातें इंटरेस्टिंग लगी। उन्होंने जिज्ञासावश पूछा, “चूँकि आप इस शहर में नए हैं। इसलिए आप इनमें से किसी को शायद ही जानते होंगे। ऐसे में यदि कोई पूछता है कि बेटा तुम कौन हो ? किसके बेटे हो ? और मुझे कैसे जानते हो ? तो क्या जवाब देते हो ?
रमेश जी ने बताया, “सर, सामान्य रूप से शहरों में ज्यादातर लोग व्यापारी, नौकरीपेशा या सेवानिवृत्त होते हैं। उन्हें लगता है कि मैं कभी किसी काम से उनके पास आया रहूँगा, जिससे उन्हें जानता होऊँगा। कुछ सीनियर सिटीजन ऐसे होते हैं जो व्यापारी या नौकरीपेशा लोगों के पैरेंट्स होते हैं। ऐसे लोग मुझसे अक्सर पूछते हैं, कि ‘बेटा तुम किसके बेटे हो और मुझे कैसे जानते हो ?’ तो मैं उन्हें कहता हूँ कि अंकल जी, मैं रामलाल जी का बेटा हूँ। आप उन्हें नहीं जानते होंगे। जयपुर में रहते थे। अब वे नहीं रहे। आपकी सकल-सूरत और पर्सनैलिटी बिलकुल मेरे पिताजी की तरह है। आपको देखकर मुझे पिताजी की याद आ जाती है। ऐसे ही किसी-किसी को कह देता हूँ कि आपकी पर्सनैलिटी मेरे चाचाजी से मिलती है। सच कहूँ सर, ऐसा सुनकर उन लोगों को जो सुकून मिलता है, वह अवर्णनीय है। मेरी एक झूठी कहानी से यदि किसी सीनियर सिटीजन को थोड़ी-सी भी खुशी मिलती है, तो इसमें क्या बुरा है ?”
मैनेजर साहब ने मुस्कुराते हुए कहा, “कोई बुराई नहीं है बेटा। बहुत ही उच्च विचार हैं आपके। ईश्वर आपको खुश रखें और आप लोगों में यूँ ही खुशियाँ बाँटते रहें।”
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़

Language: Hindi
213 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
Dr arun kumar शास्त्री
Dr arun kumar शास्त्री
DR ARUN KUMAR SHASTRI
तूँ है कि नहीं है ये सच्च सच्च बता
तूँ है कि नहीं है ये सच्च सच्च बता
VINOD CHAUHAN
*फहराओ घर-घर भारत में, आज तिरंगा प्यारा (गीत)*
*फहराओ घर-घर भारत में, आज तिरंगा प्यारा (गीत)*
Ravi Prakash
खोज करो तुम मन के अंदर
खोज करो तुम मन के अंदर
Buddha Prakash
पूरा दिन जद्दोजहद में गुजार देता हूं मैं
पूरा दिन जद्दोजहद में गुजार देता हूं मैं
शिव प्रताप लोधी
“ मैथिल क जादुई तावीज़ “ (संस्मरण )
“ मैथिल क जादुई तावीज़ “ (संस्मरण )
DrLakshman Jha Parimal
To my dear Window!!
To my dear Window!!
Rachana
गुजर गई कैसे यह जिंदगी, हुआ नहीं कुछ अहसास हमको
गुजर गई कैसे यह जिंदगी, हुआ नहीं कुछ अहसास हमको
gurudeenverma198
जितने भी मशहूर हो गए
जितने भी मशहूर हो गए
Manoj Mahato
ମୁଁ ତୁମକୁ ଭଲପାଏ
ମୁଁ ତୁମକୁ ଭଲପାଏ
Otteri Selvakumar
सूरज चाचा ! क्यों हो रहे हो इतना गर्म ।
सूरज चाचा ! क्यों हो रहे हो इतना गर्म ।
ओनिका सेतिया 'अनु '
गरीबी के मार,बीवी के ताने
गरीबी के मार,बीवी के ताने
Ranjeet kumar patre
मुझे ढूंढते ढूंढते थक गई है तन्हाइयां मेरी,
मुझे ढूंढते ढूंढते थक गई है तन्हाइयां मेरी,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
मनांतर🙏
मनांतर🙏
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
"परेशान"
Dr. Kishan tandon kranti
मेरे बस्ती के दीवारों पर
मेरे बस्ती के दीवारों पर
'अशांत' शेखर
..
..
*प्रणय*
*माँ शारदे वन्दना
*माँ शारदे वन्दना
संजय कुमार संजू
तहजीब राखिए !
तहजीब राखिए !
साहित्य गौरव
4659.*पूर्णिका*
4659.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
ऐसी थी बेख़्याली
ऐसी थी बेख़्याली
Dr fauzia Naseem shad
नजराना
नजराना
विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’
करगिल दिवस
करगिल दिवस
Neeraj Agarwal
ताड़का जैसी प्रवृति और श्याम चाहती हैं,सूपर्णखा सी स्त्रियां
ताड़का जैसी प्रवृति और श्याम चाहती हैं,सूपर्णखा सी स्त्रियां
पूर्वार्थ
जिंदगी को बोझ मान
जिंदगी को बोझ मान
भरत कुमार सोलंकी
बैठी थी मैं सजन सँग कुछ कह के मुस्कुराए ,
बैठी थी मैं सजन सँग कुछ कह के मुस्कुराए ,
Neelofar Khan
मौन संवाद
मौन संवाद
Ramswaroop Dinkar
कभी-कभी ऐसा लगता है
कभी-कभी ऐसा लगता है
Suryakant Dwivedi
विचारों को पढ़ कर छोड़ देने से जीवन मे कोई बदलाव नही आता क्य
विचारों को पढ़ कर छोड़ देने से जीवन मे कोई बदलाव नही आता क्य
Rituraj shivem verma
मेहनत करो और खुश रहो
मेहनत करो और खुश रहो
गायक - लेखक अजीत कुमार तलवार
Loading...