प्रेम
प्रेम केवल शब्दों की अभिव्यक्ति हीं नहीं। वरन्,
मौन कांपते अधरों का स्पंदन भी प्रेम है।
ख़ामोश निगाहों में मूक प्रतिक्षा भी प्रेम है।
शब्दों की अभिव्यक्ति के बिना मौन आलिंगन भी प्रेम है।
स्नेहिल शब्दों के द्वारा असत्य क्रोध का प्रदर्शन भी प्रेम है।
आशा ना होते हुए भी अंतहीन इंतजार भी प्रेम है।
आंसुओ को हंसी में बदलने का सामर्थ्य भी प्रेम है।
महलों का सुख त्याग कर वनों में भटकना भी प्रेम है।
ज़ीवन की हर परिस्थिति में किसी एक को हर बार चुन
लेना भी प्रेम है।