दुःख और मजबुरी
लघुकथा
दुःख और मजबुरी
– बीजेन्द्र जैमिनी
फटेहाल युवती को भीख माँगते देखकर दो मनचले लड़के उसके पास आये और बीस रूपय का नोट दिखा कर बोले- लेगी ?
युवती ललचाई निगाहों से रूपये देखकर बोली- इत्ते रूपये
बोले- कम है ?
दोनों उसकी ओर घूर रहे थे। वह बोली- चलो ! मेरे साथ ।
थोड़ी दुर चलने के बाद वे एक टूटे – फूटे मकान में घुसे तो खाट पर पडे बूढे़ की ओर इशारा करती बोली- मेरे बाप को पाँच सालों से टी बी है और मैं खुद एडस से पीडि़त हूँ। यही दुःख और मजबुरी भीख मगंवाती है। वह सिसक उठी ! नंजर उठाई तो दोनों मनचले गायब थे। ****