दीवाली की सफाई
लिखाई या सफ़ाई
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अरे सुनो तो ..
क्या है यार, फ़िज़ूल ही डिस्टर्ब कर रही हो।
अरे ऐसा क्या कर रहे हो, जो डिस्टर्ब हो रहे हो।।
कुछ नही एक कविता लिख रहा था…
वही फालतू का टाइम पास ,कभी किसी ने सुनी है तुम्हारी कविता।
घर के काम से जी चुराने के बहाने कोई आपसे सीखे।
चलो उठो … यह पलंग खिसकाव…
अरे यार बस एक मुक्तक की दो लाइन और लिख लू…..।
क्यों बाद में नहीं मिलेगा फोकट टाइम….
अरे ! फिर दिमाग मे आया प्लाट गायब हो जाएगा।।
अरे तो कौनसा जमीन का पट्टा चला जायेगा निखट्टू….
कभी टूटी फूटी अखबार में कोई कविता नहीं छपी।
कभी किसी कवि सम्मेलन वालो ने नही बुलाया।।
किसी चैनल का कैमरा घर तक नही आया,… बड़े हो रहे है कवि की पूँछ….
मैं कहती हूँ छोड़ो यह बकवास …..
ओर लग जाओ काम मे …. दीवाली के दस बीस महीने बाकी नही है।
अरे यार किसी दिन मेरी रचनाये भी छप जाएगी देखना…. तेरी सफाई के लिये तो मैं मना कर ही नही रहा … अभी करता हूँ। हाँ …ऐसे ही स्वाभिमान की चिड़िया को उड़ाओ.. सम्पादकों या बड़े कवियों के पैर पड़ो ..थोड़ी मख्खबाज़ी सीखो तो सड़ी कविताएं भी बिकेगी …. नही तो यह सड़ी डायरियां हर साल सफाई में मेरे ही माथे गिरेगी। न तो रद्दी में बेचते हो … न जलाने देते हो …. किसी दिन सरक गया ना मेरा तो एक डायरी नही बचेगी।
अरे भाग्यवान जलाना मत प्लीज़ …. मेरी बरसो की मेहनत है ….. अच्छा इस कबाड़ को मेहनत बोलते हो…. तुम्हारे भी समझ आती है, क्या लिखते हो ……। चलो अब यह पंखे के जाले साफ करो … गीला पौछा लेकर के … चमका दो।।।
जाने मन तुम कहो तो तुम्हें भी चमका दूँ.. थोड़ा रोमांटिक होंकर बोलना चाहा …. तो भड़क गई .. ए बुढऊ जरा शक्ल देखी ..आईने में कबूतर जैसी । गुटरगूँ तो बोलते नही बनती ओर मुझे चमकाएंगे… फिलहाल काम करो काफी काम पड़ा है और बकवास मत करना अब…। उनकी कमर पर बँधी साड़ी ने मुझे मेरा प्लाट याद दिला दिया था।।कलम घिसाई छोड़ कर पंखे की सफाई में ही भलाई थी……। जय भवानी।
कलम घिसाई