दीवार और गलियाँ
अभी वो दोनों मिले ही थे
कि उनके घरों की
दीवारें ऊँची होने लगीं
और शहर की गलियाँ तंग,
दीवारों के पार
एक-दूसरे को देखना तक मुश्किल था।
तंग गलियों में साथ-साथ चलना भी
दूभर था….
हाँ,
कई बार आया तो जी में,
कि दम घोंटती दीवारों को तोड़ दें
तंग रास्तों को छोड़ दें
और चले जायें ऐसी जगह
जहाँ की ज़मीन
उनके साथ चलने पर एतराज न जताए…
किन्तु ‘जी में आया’, ‘जी तक’ ही रहा….
कि वो दीवारें भी सगी थीं
और वो गलियाँ भी परायी न थीं
लिहाज़ा,
वो न तोड़ी गयीं
न छोड़ी गयीं….