दीवारें
दीवारें
सूर्य उदय हो रहा था और रोशनी चलती गाड़ी से खिड़की से बाहर झांक रही थी , इतने में किसी ने धीरे से उसे छूकर बड़े सम्मान से कहा ,
“मिस , यह मेरी सीट है ।”
रोशनी ने मुड़कर देखा तो उस व्यक्ति ने देखा कि लड़की की आँखें गीली हैं ।
रोशनी वहाँ से उठी और सामने की सीट पर बैठ गई ।
वह व्यक्ति कुछ पल उसे देखता रहा , अजब आकर्षण था रोशनी के चेहरे पर, मासूमियत और बुद्धिमानी का अजीब मिश्रण , उसने हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा ,
“मेरी नाम आदित्य है ।”
“ रोशनी ।” हाथ मिलाते हुए उसने मुस्करा कर कहा , जैसे बस यही क्षण सच हो, बीत गया पल उसकी भावनाओं से बीत गया हो ।
आदित्य ने कहा , लूडो खेलती हैं आप ?
“ क्या ? “
“काम के सिलसिले में मुझे बहुत ट्रैवल करना पड़ता है , सहयात्रियों से लूडो खेलकर समय निकाल लेता हूँ ।
रोशनी मुस्करा दी ,” ठीक है , निकालिये ।”
आदित्य ने अपने हैंडबैग से लकड़ी की एक बहुत ख़ूबसूरत लूडो निकाली तो , रोशनी ने कहा , “ वाह , बहुत ख़ूबसूरत है , और लकड़ी पर कितनी ख़ूबसूरत नक़्क़ाशी है, मेरे पापा किया करते थे ।”
“ अब नहीं करते ?”
“ अब वे नहीं रहे । “
“ ओह , आय एम सारीं ।”
थैंक्स ।” उसने एक उदास मुस्कान के साथ कहा ।
पहली बाज़ी रोशनी जीत गई तो उसने कहा ,” लगता है अनुभव का यहाँ आप को कोई फ़ायदा नहीं हो रहा ।”
सुनकर आदित्य ज़ोर से हंस दिया,” ख़ूबसूरत लड़की देखकर डाईस भी अपनी वफ़ादारी बदलने लगता है। “
सुनकर रोशनी भी हंस दी ,” थैंक्स फ़ार द कांपलीमैंट । “
गाड़ी दिल्ली पहुँची तो आदित्य ने अपने बैग से एक लकड़ी के छुरी काँटे को रोशनी को देते हुए कहा ,” यह मेरी तरफ़ से, इसकी नक़्क़ाशी मैंने की है ।”
रोशनी ने हाथ में लेते हुए कहा , “ बहुत ख़ूबसूरत है , क्या लूडो खेलने वाले को अंत में इनाम में दिया जाता है ?”
आदित्य हंस दिया , “ हाँ यदि खेलनेवाले को ख़ूबसूरती की पहचान हो तो , यह अपनी माँ को मेरी तरफ़ से दे देना , उन्हें अच्छा लगेगा ।”
बात रोशनी के ह्रदय को छू गई, “ घर आओ कभी , मेरी माँ को अच्छा लगेगा ।”
“ ज़रूर ।” उसने उसके दिये हुए पत्ते को जेब में घुसाते हुए कहा ।
घर आकर रोशनी फिर अपने आंसुओं में डूबने लगी । माँ आफ़िस चली जाती थी और यह पूरा पूरा दिन निश्चेष्ट सी खिड़की के बाहर झांकती रहती थी । माँ से अपनी इकलौती बेटी की यह हालत देखी नहीं जा रही थी । तलाक़ के बाद से रोशनी अपराध भाव से दबे जा रही थी , अपने तीन साल के बेटे को पीछे छोड़ते हुए उसका कलेजा फटा जा रहा था । एक हफ़्ता पहले मुंबई गई थी , ताकि बेटे से मिल सके, कोर्ट ने तो इसकी इजाज़त दे दी थी , परन्तु अविनाश , उसके भूतपूर्व पति ने यह कहकर मिलने नहीं दिया था कि इससे बच्चे को अपनी नई माँ को स्वीकारने में कठिनाई होगी । रोशनी की माँ अपनी खिलखिलाती बेटी की ज़िंदगी के इस मोड़ के लिए स्वयं को दोषी मान रही थी ॥
रोशनी दस साल की थी जब वह रोज़ की तरह अपने पापा का बालकनी से इन्तज़ार कर रही थी, पापा दूर से मुस्कुराते हुए आ रहे थे कि अचानक स्कूटर से गिर पड़े और उनकी मृत्यु हो गई, डाक्टर ने बाद में बताया कि हार्ट अटैक था, दर्द से स्कूटर का संतुलन बिगड़ गया था ।
रोशनी की नानी ने आकर दोनों माँ बेटी को सँभाला । धीरे-धीरे रोशनी एक खूबसूरत आत्मविश्वास से भरपूर युवती हो गई , स्कूल के आख़िरी साल में उसने थोड़ी बहुत माडलिंग शुरू कर दी थी । उन्हीं दिनों उसका परिचय अपनी सहेली नंदिता के भाई अविनाश से हुआ, वह इंजीनियर था और नौकरी करता था ।
एक दिन वह अविनाश को माँ और नानी से मिलाने घर ले आई । उसका क़द , रंग , रूप रोशनी के पापा से इतना मिलता था कि दोनों सकते में आ गई । बातों बातों में पता चला कि वह रोशनी के पापा के किसी पुराने मित्र का बेटा है । उसके पापा के दोस्त दुनिया भर में फैले थे इसलिए इस संजोग से किसी को कोई विशेष आश्चर्य नहीं हुआ ।
माँ ने कहा, “ शादी के लिए इससे बेहतर क्या हो सकता है । पिता के मित्र का परिवार तुम्हारा आदर करेगा । “
रोशनी की सत्रह साल में शादी हो गई । दो महीने बाद ही अविनाश ने उसपर दुनिया भर की बंदिशें लगानी शुरू कर दी । पढ़ाई तो रूक ही गई थी , उसकी माडलिंग भी बंद करवा दी । छोटी छोटी ग़लतियों पर थप्पड़ जड़ देता । रोशनी इससे पहले कि अपने इस कुरूप जीवन को समझ आगे कोई कदम उठाती , वह गर्भवती हो गई, माँ ने कहा, बच्चा होने के बाद शायद बदल जाय , परन्तु वह पहले से भी अधिक ख़ूँख़ार हो उठा , रोशनी के बदन की बदली रूपरेखा को लेकर ताने मारता ।
एक दिन उसने दरवाज़ा खोला तो सामने नानी खड़ी थी , वह रोशनी को लेने आई थी , आख़िर इस तरह का अत्याचार वह क्यों सहे ?
तलाक़ पूरा होते न होते नानी इस दुनिया से जा चुकी थी , इस क़ानूनी लड़ाई ने रोशनी को और भी अधिक तोड़ दिया था , अविनाश ने उसका इतनी बार अपमान किया था कि वह हीन भावना की शिकार हो गई थी , और अपराध बोध इतना अधिक था कि मन किसी तरह भी सँभाले नहीं संभलता था , वह जहां जाती घने बादलों की तरह इन भावनाओं का साया उसके अस्तित्व को घेरे रहता ।
आदित्य से मिलना उसे सुखद लगा था , पर उसका विश्वास टूट चुका था ।
माँ ने कहा , “ आदित्य अच्छा लड़का है , पर पहले तुम अपना बुटीक खोलकर आत्मनिर्भर हो जाओ ।”
रोशनी ने किसी तरह संघर्ष आरंभ किया , इन कठिन दिनों में आदित्य क़रीब आता गया , इससे पहले कि उसके घाव पूरी तरह भरते , माँ भी एक छोटी सी बीमारी के बाद चल बसी । उस अकेले घर में रोशनी का मन कराह उठा , आदित्य ने कहा , “ दुनिया चाहे कुछ भी कहें मैं तुम्हारे घर आकर , तुम्हारे साथ रहूँगा, और धीरे-धीरे माँ पापा भी इस शादी के लिए मान जायेंगे । “
रोशनी चाहती थी वह उसके साथ आकर रहे , परन्तु उसे इस बात से नाराज़गी थी कि आदित्य चाहता है वह अपनी पहली शादी की कोई चर्चा न करें और इस बात को गुप्त रखे ।
रोशनी ने कहा , “ मैं किसी और को नहीं बताऊँगी , पर तुम्हें अपने माँ पापा को बताना होगा ।”
आदित्य ने मना किया तो एक दिन वह स्वयं ही आदित्य की माँ से मिलने चल दी । सारी सच्चाई सुनने पर , न जाने क्यों आदित्य की माँ को यह ख़ूबसूरत, बहादुर लड़की अच्छी लगी , और दोनों की शादी हो गई ।
कुछ ही दिनों में आदित्य को सिडनी में नौकरी मिल गई, और वे दोनों एक नए परिवेश में आ गए ।
वे जो बातें दिल्ली में अपने आकार से बड़ी लगती थी, सिडनी में उनके अर्थ धुंधले पड़ने लगे । उनके अपने दो बच्चे हुए, परन्तु रोशनी का अपराध भाव अब भी बना हुआ था , आदित्य ने उसे अपने पहले बेटे से किसी भी तरह का संपर्क रखने के लिए या पुरानी बातें उघाड़ने के लिए आरम्भ से ही मना कर दिया था , यह वह चुभन थी जिसकी आह को उसे दबाना था । वह अपने अतीत को समझना चाहती थी , और उसके लिए बात करना ज़रूरी था , पर किसी को बताने का अर्थ था आदित्य के साथ विश्वासघात ।
रोशनी ने सिडनी में एक रैस्टोरैंट खोल लिया , उसकी सफलता से उसका खोया आत्मविश्वास लौटने लगा , वह जहां जाती उसका व्यक्तित्व उभर आता । वह दबी सहमी रोशनी छँटकर हवा हो गई, और इस पुनर्जीवित रोशनी के लिए यह आवश्यक हो उठा कि आदित्य यदि उसे चाहे तो पूरे अभिमान के साथ, इस तरह कटा छटा प्यार उसके लिए काफ़ी नहीं ।
रविवार का दिन था , वह ट्रैकिंग के लिए घर से निकले थे, बच्चे तेज़ी से आगे निकल रहे थे , एक तरफ़ नीला, स्वच्छ समुद्र था , दूसरी ओर युगों पूर्व की अपनी गाथा कहती चट्टानें , हल्की धूप, शांत हवा , और कदमों का आत्मविश्वास आदित्य में भरपूर गृहस्थी का सुख जगा रहा था ।
आदित्य ने कहा, “ अच्छा लग रहा है न ?”
रोशनी ने कोई उत्तर नहीं दिया तो उसने हाथ पकड़ते हुए कहा , “ कोई परेशानी?”
“ हुं ।” रोशनी ने सिर हिला दिया ।
“ बताओ ।”
“तुम्हें अच्छा नहीं लगेगा ।”
आदित्य का चेहरा उतर गया । वह जान गया उसका फिर से कटघरे में खड़े होने का समय आ गया है ।
“ तुम्हें मेरे अतीत से शर्म आती है , मेरा जो हिस्सा पसंद आया उसे रख लिया और…।”
उसकी बात पूरी भी नहीं हुई थी कि आदित्य ने कहा ,” बात मेरी नहीं समाज की है । लोग तुम्हारे बारे में क्या सोचेंगे?”
रोशनी के चेहरे पर व्यंग्य उभर आया , “ यहाँ बात मेरी नहीं तुम्हारी है, तुम्हें डर है लोग यह सोचेंगे कि इसने एक तलाकशुदा, एक बच्चे की माँ से शादी की है , इसको कोई और नहीं मिली । तुम यह सोचते हो कि मेरे बेटे का ज़िक्र होगा तो साथ यह चर्चा भी होगी कि किसी की ठुकराई हुई पत्नी को तुमने अपनाया है । “
आदित्य का चेहरा क्रोध से तमतमा उठा , और वह आगे जाते हुए बच्चों को पकड़ने के लिए दौड़ पड़ा ।
रोशनी और आदित्य के जीवन में वह तनाव मुखर हो उठा , जिसे अब तक वे दबाते आए थे । जो अंदर ही अंदर अधूरा था वह टूट रहा था, उसे सहारे की ज़रूरत थी, इस टूटने में मात्र विक्षिप्तता थी , तर्क , सहानुभूति कुचले पड़े थे ।
वे बच्चों के सामने सामान्य बने रहने का प्रयत्न करते , पर मन मुटाव इतना गहरा था कि पाँच और सात साल के छोटे बच्चे भी तनाव को भाँप रहे थे, मित्रों से मिलते तो उनकी सहजता उनको स्वयं को एक नाटक लगती , अकेले होते तो मुँह फेर लेते ।
इस स्थिति को दो महीने से अधिक हो चुके थे , बच्चे स्कूल जा चुके थे , आदित्य ने दूर से देखा, रोशनी का वजन थोड़ा घट गया है, और शायद वह इतना रोई है कि उसने रोना बंद कर दिया है । वह उठकर उसके पास आ गया , और पकड़ कर सोफ़े पर बिठा दिया । रोशनी ने कोई विरोध नहीं किया, तो आदित्य ने उसका हाथ अपने हाथों में ले लिया,
रोशनी ने कुछ पल उसे सीधे देखा , फिर कहा , “ मैं यह दोहरी ज़िंदगी नहीं जी सकती ।”
“ जानता हूँ ।” आदित्य ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा ।
“ फिर?
“फिर क्या , पहले तो तुम अपने बेटे से मिलने के लिए अविनाश को फ़ोन करो ।”
“ तुम इनसिक्योरड तो फ़ील नहीं करोगे ?”
आदित्य मुस्करा दिया, “ मैं इनसिक्योरड नहीं हूँ । “
“ तो ?”
आदित्य ने उसका हाथ छोड़ दिया , और बाहर फैले आकाश को देखते हुए कहा , “ दरअसल समाज हमें इतना कंडीशंड कर देता है कि हम सही मायने में किसी को प्यार करने के काबिल ही नहीं रहते, सारी उम्र समाज के मापदंडों में फ़िट होने की कोशिश करते रहते है। अब भी निकल पाया हूँ तो इसलिए क्योंकि उस कंडीशनिंग को दूर से देख पा रहा हूँ ।”
रोशनी की आँखें नम हो उठी तो आदित्य ने उसके आंसू पोंछते हुए कहा , “ रो क्यों रही हो ?”
“ कुछ नहीं ।” रोशनी ने उठते हुए कहा ।
आदित्य ने धम से उसे फिर से बिठाते हुए कहा , “ बता न ?”
“ नहीं , तुम नहीं समझोगे ।” और वह फिर से उठने लगी तो आदित्य ने उसे फिर से धम से बिठा दिया ,
“ माना कि मैंने बहुत बड़ी गलती की है , पर इसका मतलब यह नहीं है कि अब मैं कुछ समझ ही नहीं सकता।” आदित्य ने कहा ।
रोशनी मुस्करा दी , “ दरअसल मुझे लगता था मुझमें कोई कमी है, तुम्हारे प्यार में इतनी ताक़त थी कि मैं सब कुछ पीछे छोड़ आगे बड़ सकी , पर मेरे प्यार में इतनी ताक़त नहीं थी कि तुम ये बनावटी दीवारें तोड़ सकते ।”
आदित्य की भी आँखें नम हो आई और उसने उसके गाल सहलाते हुए कहा, “ तुम्हें नहीं पता तुम्हारे प्रेम में कितनी ताक़त है ।”
दोनों मुस्करा दिये ।
“ तो अब ? रोशनी ने कहा ।
“ अब आज हम दोनों छुट्टी लेंगे, तुम मुझे वे सारी बातें बताना , जिनको मैं अभी तक सुन नहीं पा रहा था, चाहो तो बच्चों को भी उनके भाई के बारे में बता देना , और मैं सबको बता दूँगा , मेरे लिए तुम ही तुम हो अपने पूरे अतीत के साथ ।”
“ अच्छा अच्छा अब ज़्यादा हीरो मत बनो , तुम अपना काम करो, और मुझे अपना करने दो । बातें फिर कभी होंगी । चलो उठो।” रोशनी ने खड़े होकर उसे खींचते हुए कहा ।
आदित्य मुस्करा कर तैयार होने चला गया । किचन समेटते हुए रोशनी को अपने बदन मे, मस्तिष्क में , मन में एक नई लय का अनुभव हो रहा था , वह पूर्ण हो गई थी , आदित्य को पाने के अभिमान से उसकी मुस्कराहट पूरी किचन में फैल गई थी ।
—- शशि महाजन
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