दीवानों के पीर
****** दीवानों के पीर ******
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दीवानों के जैसे तुम पीर हो गए,
राँझे की खोई जैसे हीर हो गए।
नजरों में रहते – रहते दूर हो गए,
कैदी के जैसे ही जंजीर हो गए।
सांसों में बसते हो मेरे यहीं कहीं,
आजीवन में लंबी सी धीर हो गए।
राहों में आते-जाते भी कहीं नहीं,
दीवारों पर टँगी तस्वीर हो गए।
मनसीरत कैसे भूले है नज़र लगी,
आँखों मे जैसे बहते नीर हो गए।
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सुखविंदर सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)