Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
27 Aug 2022 · 1 min read

दीवानों के पीर

****** दीवानों के पीर ******
*************************

दीवानों के जैसे तुम पीर हो गए,
राँझे की खोई जैसे हीर हो गए।

नजरों में रहते – रहते दूर हो गए,
कैदी के जैसे ही जंजीर हो गए।

सांसों में बसते हो मेरे यहीं कहीं,
आजीवन में लंबी सी धीर हो गए।

राहों में आते-जाते भी कहीं नहीं,
दीवारों पर टँगी तस्वीर हो गए।

मनसीरत कैसे भूले है नज़र लगी,
आँखों मे जैसे बहते नीर हो गए।
**************************
सुखविंदर सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

Language: Hindi
100 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Loading...