दीवाने तो दीवाने हैं …
नफरतों के शहर में ,
मुहोबत की दुकान खोलने आए हैं ।
कितने नादान है वोह ,
जो शोलों के बवंडर मेंआग से खेलने आए हैं ।
मगर दीवाने तो दीवाने ठहरे ,
इस जालिम जमाने की रवायत कहां समझते हैं।
नफरतों के शहर में ,
मुहोबत की दुकान खोलने आए हैं ।
कितने नादान है वोह ,
जो शोलों के बवंडर मेंआग से खेलने आए हैं ।
मगर दीवाने तो दीवाने ठहरे ,
इस जालिम जमाने की रवायत कहां समझते हैं।