दीप से दीप जले
‘दीप से दीप’ जले गुरूदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर की एक लोक प्रसिद्ध उक्ति है । उन्होने इस उक्ति का प्रयोग शिक्षकों के संदर्भ में किया था । मंदिरों में दीपक जलाने की पद्धति यह है कि पहले एक दीपक जला लिया जाता है फिर उसकी सहायता से दूसरे दीपक जलाते हैँ । दीपावली के अवसर पर हम सब यही करते हैँ । पहले एक दीपक या मोमबत्ती जला लेते हैं । फिर उसकी मदद से दूसरे दीपक या मोमबत्ती जलाते रहते हैं । यदि पहला दीपक ही बुझ जाए तो फिर दूसरा दीपक कैसे जलाया जाएगा। यहां अध्यापक को पहला दीपक तथा छात्रों को शेष दीपक कहा गया है । गुरूदेव अध्यापक को पहला दीपक कहकर यह रेखांकित करना चाहते थे कि जब तक वह स्वयं ज्ञानार्जन करता रहता है तब तक अपने विधार्थियों को भी ज्ञान देता रहता है । जिस दिन वह अध्ययन – मनन करना छोड़ देता है उस दिन उसमें विधार्थियों को नया ज्ञान देने की क्षमता नहीं रह जाती । इस प्रकार गुरूदेव ने लोकजीवन से उदाहरण लेते हुए अध्यापकों को निरन्तर अध्ययन अनुशीलन में लगे रहने की सलाह दी है क्योकि तभी शिक्षक दूसरे को सही मार्ग दिखा सकते है और उन्हे दीप के तरह सदैव स्वयं जलकर दूसरो को प्रकाशमान करने की शिक्षा प्रदान कर सकते है । शिक्षक के पथ प्रदर्शक होने के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण पंक्ति याद आती है ।
‘’गुरू सुआ जेहि पंथ दिखावा, बिनु गुरू जगत को निरगुन पावा ’’ ।