दीप बनकर तुम सदा जलते रहो
तुम नदी बनकर निरन्तर ही बहो
टिक न पाएगी कोई चट्टान भी
दीप बनकर तुम सदा जलते रहो
फिर नहीं होगा तिमिर का भान भी
वक़्त जब विपरीत होता है यहाँ
फूल से भी तब हमें मिलती चुभन
ज़िन्दगी में जब बुरे हालात हों
टूटने देना न हिम्मत और मन
जब समझ आ जाएगी ये ज़िन्दगी
एक दिन पा जाओगे पहचान भी
दीप बनकर……
आज है जो कल बदल वो जाएगा
एक से रहते कभी मौसम नहीं
कोशिशें करते रहो, बढ़ते रहो
मंज़िले भी ज़िन्दगी में कम नहीं
जब समय अनुकूल होगा देखना
मुश्किलें हो जाएंगी आसान भी
दीप बनकर….
साथ चलना है हमें हर हाल में
चाल तो छुपकर चलेगी ज़िन्दगी
ये करेगी हर समय मनमानियाँ
हर डगर हमको छलेगी ज़िन्दगी
खो न देना पर कहीं तुम धैर्य को
है अगर ये बोझ, तो वरदान भी
दीप बनकर…
26-8-2021
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद